गंगा
।।मुक्तिदायिनी पावन गंगा।।
गंगा
गं गं गच्छति इति गंगा
गं गं का नाद करती
नित्य प्रवाहमान यह गंगा
अणहद सा उच्चार कर रही
ग- गतिमान रहो सदा ही
ं- लक्ष्य सदा धरो ध्यान में
उस उर्ध्व बिंदु रूप परम ब्रह्म की ओर
गा- गायन कर, सामर्थ्यवान-बन वरेण्य गुणों का
तब मुक्तिकामी मुक्ति तू पाएगा
जी पाएगा जीवन में
दुरितानि परासुव-यद् भद्रं तन्न आसुव के संकल्प को
देख माँ गंगा की जीवनयात्रा
संसार को जीवन संदेश दिए
गं गं का नाद कर
सतत आतुरता से चली
अपने लक्ष्य की ओर
ससीम को असीम में एकाकार करने
धारण किया लोक कल्याण को
मातुशक्ति मुक्ति प्रदायिनी
सकल वैभव की दाता
मानवता की कल्याणकरी
संस्कृतिधरा जीवनवरा
श्री महाविष्णु के पद की जलबिंदु
श्री चरणों से झरी
प्रभु शिव के शिशजटा में धरी
फिर उतर धरा पर
किया कल्याण जगत का
हे माँ कोटि कोटि नमन तुम्हे
विश्व कल्याणकरी