इश्क़ की दास्तां

इश्क़ की दास्तां
तेरी यादों की चादर में लिपटा रहा,
हर लम्हा तेरा नाम ही लिखता रहा।
लिखा जो कभी चाँदनी रातों में था,
वो लफ़्ज़ भी मेरी तरह तन्हा रहा।
तन्हाई में जब भी तुझे सोचता,
दिल का हर एक ज़ख्म हरा हो गया।
हवा पूछती है ठिकाना मेरा,
मैं उस मोड़ पर हूँ जहाँ तू मिला।
मिला जो भी तुझसा, तुझे ढूंढा मैं,
मगर कोई भी तुझसा ना मिल सका।
बिछड़कर भी रिश्ता जुड़ा रह गया,
तेरी खामोशियों में सुकूं सा मिला।
चलो अब मोहब्बत को दफ़्न कर दें,
ये रिश्ता भी आखिर सज़ा हो गया।