गम भुलाने के और भी तरीके रखे हैं मैंने जहन में,
खुद को मसरूफ़ ऐसे रखते हैं
गृहस्थ आश्रम
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
सपनो का सफर संघर्ष लाता है तभी सफलता का आनंद देता है।
कठिनाइयों ने सत्य का दर्पण दिखा दिया
बेशक आजमा रही आज तू मुझको,मेरी तकदीर
थोड़ी फुरसत भी शुकून नहीं मिलता
मैं तुम्हें लिखता रहूंगा
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
"हे! कृष्ण, इस कलि काल में"
बुंदेली चौकड़िया
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
जख्म वह तो भर भी जाएंगे जो बाहर से दिखते हैं
*प्रेम क्या क्यों और कैसे?*
वो गलियाँ मंदर मुझे याद है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
अब हर राज़ से पर्दा उठाया जाएगा।