“हे! कृष्ण, इस कलि काल में”

हे कृष्ण, इस कलि काल में,
जरूरत में जरूरत तुम्हारी।
घोर अँधेरा छाया जग में,
पापों की है भरमार।
मोह-माया का जाल बिछा है,
छूटे सब संस्कार।
मन अशांत, हृदय व्याकुल,
राह न कोई दिखलाए।
इस भवसागर के तूफानों में,
कोई कैसे किनारा पाए?
हे कृष्ण, तुम ही ज्योति हो जग की, ज्ञान का अनुपम सार,
प्रेम की गंगा तुम ही बहाओ,
मिटे हृदय का भार।
अर्जुन के तुम सारथी बने थे,
दिया कर्म का ज्ञान।
आज भटकती नैया मेरी,
तुम ही धरो पतवार।
रिश्ते-नाते टूटे-बिखरे,
स्वार्थ का बोलबाला है।
सच्चाई खोई-खोई सी है,
झूठ का उजियाला है।
हर ओर निराशा का बादल,
उम्मीद की किरण धुंधली।
इस अंधकार में हे माधव,
राह दिखाओ अगली।
तुम्हारी लीला अपरम्पार है,
महिमा अगम अगोचर।
भक्तों के तुम सदा सहायक,
करुणा के सागर।
द्रौपदी की लाज बचाई,
गज की सुनी पुकार
इस कलि युग के संकट हर लो,
हे पालनहार।
मन मंदिर में आओ भगवन,
करो कृपा की बरसात,
अपनी भक्ति का रंग चढ़ा दो,
हर लो मन की मात।
तेरी शरण में जो भी आए,
पाए शांति अविचल।
हे कृष्ण, इस कलि काल में,
जरूरत में जरूरत तुम्हारी, हर पल।
आलोक पांडेय
गरोठ, मंदसौर, मध्यप्रदेश।