धूप और कोहरा
धूप मेरे साहित्य आंगन की देती मुझको नवऊष्मित भोर,
अर्घ्य दे(रचना प्रेषित)करती मै रश्मि-रथी का वंदन अभिनंदन
सहलाती दे सुअवसर ,सृजनीत करती मेरे सुषुप्त संभावनाओ
को और स्याह संकीर्णसुरंगों ,
पथरीली पगडंडियों में रेंगते , परंपराओं की मोटी श्रृंखलाओ को तोड़ने का साहस भरती,
कुहासे के जीवन को पराजित कर,नव आस किरण लिए धूप
उजियारे का बोध कराती क्लिष्ट ,कलुषता, कल्प का कोहरा हटाती
लक्ष्य धुंधलाने से पहले मार्ग मुझको दिखलाती
धूप इस आंगन का पा अश्रु मोती सा….चमचमाती….
अंजू पांडेय अश्रु