गृहस्थ आश्रम
संतन के संग संग , भक्ति भाव भर कर |
स्वार्थ निज तज कर , सेवा भाव धार लो |
धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष,ज्ञान, कर्म, भक्ति,योग,
साक्षी सम भाव हेतु, कर्म का ही भार लो
राजा परीक्षित हुये, ब्रह्म ज्ञानी महा राज|
कथा भागवत का ही,नित पान कार लो |
ब्रह्म ज्ञान पाने हेतु, व्यास गद्दी मान हेतु,
जगत कल्याण हेतु , पापियों को तार लो |
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम