मैं संविधान हूं।
मैं संविधान हूं।
मेरा सृजन तो,
भारतीय सरकार अधिनियम 1935 के तहत हो गया था।
पर मेरा वास्तविक सृजन की शुरुआत,
दिसंबर 1946 से हुआ था।
मुझे 2 वर्ष 11 माह 18 दिन,
बच्चे की तरह मां के गर्भ में रहना पड़ा।
मेरा जन्म 26 नवंबर 1949 को हुआ।
पर बच्चों की तरह,
मेरा छठियार 26 जनवरी 1950 को हुआ।
तब से प्रत्येक वर्ष,
26 जनवरी को मेरा वर्षगांठ मनाया जाता है।
मैं वकीलों के बीच,
पाला, बड़हा और सयान हुआ हूं।
इसलिए मैं वकीलों के लिए स्वर्ग,
पर आम आदमी के लिए कानून हूं।
जहां मुझे पिता वाला प्यार,
बाबा साहब भीमराव से मिला।
वहीं मुझे माता वाला प्यार,
बीएन राव से मिला।
मेरा शक्ल कई देशों से मिलता हैं।
जिसमें कनाडा, सोवियत संघ, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान है।
साउथ अफ्रीका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, फ्रांस है।
पर फिर भी मैं किसी की पहचान का नहीं मोहताज हूं।
क्योंकि मैं स्वयं में विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान हूं।
ना चलने के लिए मेरे पास पैर है,
ना बोलने के लिए मेरे पास मुंह।
फिर भी सारी दुनिया,
मेरे पीछे भागती है युंह
राष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा,
ये तीनों मेरे अंग हैं।
विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका,
ये तीनों मेरे संग हैं।
जब ये तीनों-तीनों से मिल जाते हैं तो,
मैं सही को गलत-गलत को सही कर देता हूं।
मैं संविधान हूं संविधान की भाषा बोलता हूं।
मैं लोगों को मूल अधिकार और मौलिक कर्तव्य देता हूं,
पर कुछ लोग अधिकार के चक्कर में कर्तव्य भुल जाते हैं।
और अपने ही देश की संपत्ति को क्षति पहुंचाते हैं।
सरकारें आती है और जाती है,
पर मैं यू हीं पड़ा रहता हूं।
संशोधन के नाम पर मैं,
दिन पर दिन फलता फुलता रहता हूं।
कई लोग मेरे नाम पर,
कई – कई चुनाव लड़ लेते हैं।
सफलता मिले ना मिले पर,
हाथों में लेकर हमें संसद में लहराते हैं।
उसी में से कुछ सौभाग्यशाली वाले लोग,
मुझे माथे से लगाते हैं।
उसी को धर्म ग्रंथ मानकर,
देश को परम वैभव तक ले जाने का सपने सजाते हैं।
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@जय लगन कुमार हैप्पी
बेतिया, बिहार।