चलो चलें हम कुंभ नहाएँ

भेद भाव के पथ को त्यागें
चलो चलें हम कुंभ नहाएँ ।
संत जनों का पुण्य समागम,
भगवत दर्शन तुम्हें कराएँ ।।
गंगा यमुना सरस्वती से
सारे जग की प्रीति पुरानी ।
रात लगे रानी दिन राजा
शुभ संगम की अमर कहानी।।
सत्य सनातन भारत की जय
संस्कृति अपनी तुम्हें दिखाएँ ।
चलो चले हम कुंभ नहाएँ ।।
साधु तपस्वी नागाओं की
दूर-दूर से आई टोली ।
झोली भरते आशीषों से
सबसे बोलें मीठी बोली ।।
कुंभ बड़ा मेला गुरु चेला
मुक्ति कथा को नित्य सुनाएँ ।
चलो चलें हम कुंभ नहाएँ ।।
आध्यात्मिक खुशियों का मेला
भक्ति भाव की चिर परंपरा।
अमृत कोष से भरे कुंभ को
छलकाती पावन पुरंदरा।।
धर्म भक्ति के पुण्य तीर्थ की
दिव्य शक्तियाँ हमें बुलाएँ।
चलो चलें हम कुंभ नहाएँ ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी