कलम
मेरी कलम ने मुझे बोलना सिखाया, चुप रहके भी कैसे बोलते है इसका ज्ञान पढ़ाया……
मेरे मन की आवाज अब निली शाही बनकर कोरे कागज पर बहती हैं, और कविताओं का रुप ले लेती हैं, क्यों की मेरी कलम ने मुझे बोलना सिखाया…
बिना बोले ही अब मेरे शब्द दुसरोंके कानों में गुंजते हैं, कभी उन्हें रुलाते हैं, तो कभी चुभते हैं, क्यों की मेरी कलम ने मुझे बोलना सिखाया… सामाजिक हो या आर्थिक, रिश्तों की हो या खुद की बातचीत, मेरी कलम अब किसी से नहीं ड़रती…. बस चल पड़ती हैं……
बिना बोले ही. बहोत कछ सुनाने के लिये….