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24 May 2024 · 1 min read

ग़ज़ल (ज़िंदगी)

ज़िंदगी

चलते -चलते गिरी फिर उठी ज़िन्दगी।
आगे हर हाल में ही बढ़ी ज़िन्दगी।।

उम्र भर साथ तेरा निवाहेंगे हम।
तुम मिले यूँ लगा मिल गई ज़िन्दगी।

भोर से साँझ तक मुस्कुराती रहे
वक्त की शाख़ पर फूल सी ज़िंदगी

कोई अपना भी जब रूठ जाए कभी।
सांस-दर-सांस ज्यों ख़ुद कुशी ज़िन्दगी।।

‘रागिनी’ का मुहब्बत भरा एक दिल।
नफ़रतों से सहमती रही ज़िन्दगी।।

डॉ. रागिनी शर्मा,
इन्दौर

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