विदाई जोशी जी की
आशीष जोशी यानी एक छवि बनती है अलग सी
समय की प्रतिबद्धता सबसे थोड़ी अलग सी
शौम्य, सुशील और संस्कारी ।
बनती है छवि चित्रपटल पर हमारी ।।
एक अकेले ही है ये सब पर भारी ।
क्योकि करते ही नही फ़ालतू की यारी ।।
मुस्कान चहरे पर है पहचान तुम्हारी ।
कोई कुछ भी कहे नही चिन्ता तुम्हारी ।।
नही मिली अभी तक कोई कन्या कुंवारी ।
इसलिए जोशी जी है अबतक बाल ब्रह्मचारी ।।
आईटीम को खलेगी अनुपस्थिति तुम्हारी ।
डील वालो को मिलेगी उपस्थिति तुम्हारी ।।
आप ऐसे ही मुस्कुराते रहे ये दुआ है हमारी ।
आप भी घर गृहस्थी बसाये ये अभिलाषा हमारी ।।
ललकार भारद्वाज
31 जनवरी 2025