###अंगुलिमाल की पुनर्जन्म !

विचित्र है अब भी अंगुलिमाल बनना,
अधर्म था जिसका एक ही कर्म,
पुनर्जन्म उसके देख अब लगता शर्म,
अंगुलियाँ काट के प्रयाय बनना,
जिसका एक ही था कर्म,
कभी समझ न पाया जो लहूलुहानों का मर्म।
लहू से सना था जिसका मार्ग,
क्रूरता से भरा था कर्म,
हर दिशा में बस फैला था कुकर्म,
उसी को अब जिंदा बनाना अनुचित धर्म,
मीठे शब्दों की चाशनी है अधर्म,
अभी भी वक्त है, बनो सबका मरहम।
गुरु का आदेश माना, पर मार्ग था कुकर्म,
अंगुलिमाल के हिंसा ने किया जीवन दुर्बल,
आतंक से उसके कांपते थे सब,
क्यों तूँ उसका पथगामी बनता अब,
भूतनाथ की भेष छोड़ो अब,
समय, संविधान के पकड़ मार्ग अब।
पुराने शब्द जो भूगोल-इतिहास के पन्नों में हैं दर्ज,
अब उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करना न समझो फर्ज,
अपनी मधेशी पहचान पर करो गर्व,
लोकजीवन में शान्ति, प्रगति के लिए करो कर्म,
पुरानी टीकाओं पुनर्जीवित करने की जिद पर करो शर्म,
अंगुलिमाल चरित्र छोड़,अपनाओ असंलग्नता का धर्म।
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#दिनेश_यादव #
***कलंकी, काठमाण्डू (नेपाल) ***
1 फरवरी, 2025, शनिवार
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