कुंडलिया

कुंडलिया
दम्भी बन जो ऐंठता, नही बुरा इंसान।
ईश्वर ने मति फेरकर, दिया कुतर्की ज्ञान।।
दिया कुतर्की ज्ञान, दया के पात्र कहाते।
पहन शेर की खाल, विपिन में भय फैलाते।।
कह बाबा मुस्काय, हानिकर जल में कुम्भी।
दम से होते हीन, कहाते वह ही दम्भी।।
©दुष्यंत ‘बाबा’