वो हरियाली का जवान वृक्ष

वो हरियाली का जवान वृक्ष
जिसे उड़ते परींदे भी चाहा करते थे
और प्यार से आ बैठ जाया करते थे
कुटिल हवाओं के झोकों ने उसे पतझड़ कर दिया है
उसके जिस्म की दुश्मन दींव ने भी अंदर से खोखला कर दिया है|
अब वो मारा जाएगा
मारा जाएगा बेमौत,
अब वो कांटों से लथपथ थका-हुआ निराश खड़ा है
और परींदे दूर जा बैठे है
अब उस पर वसंत में भी मौहब्बत का कोई फूल नहीं आता|
~जितेन्द्र कुमार “सरकार”