संघर्षों के महासमर में

संघर्षों के महासमर में
ख़ुद से क्षण क्षण लडता मैं,
संसार के अवरोधों से जूझ
संघर्षों से कब घबराता मैं,
चक्रव्यूह में फँसे अभिमन्यु सा
धैर्य से लक्ष्य साधता मैं,
हतप्रभ साँसों को संयत कर
विश्वास की राह सजाता मैं,
स्वार्थो के अनुबंधों से असहज
अपना पीछा छुड़ाता मैं,
घिरा हूँ समय के कुचक्र में ‘बेसुध’
फिर भी कहाँ परेशान हूँ मैं।