धूप थी छाँव थी फूलों की बेशुमार बहार थी।

धूप थी छाँव थी फूलों की बेशुमार बहार थी।
मगर होठों पे पहले जैसी ना मुस्कान बेहद ख़ास थी।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
धूप थी छाँव थी फूलों की बेशुमार बहार थी।
मगर होठों पे पहले जैसी ना मुस्कान बेहद ख़ास थी।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”