फरेब के ताने- बाने

फरेब के ताने-बाने
(फरेब चाहे जितना ताकतवर हो, सत्य हमेशा उसकी मजबूती से मुकाबला कर लेता है, यही आजतक का इतिहास रहा है)
निलेश की परेशानी उसी दिन से बढ़ने लगी थी जब उसकी मां ने उसे टोका। वह ध्यान से कुछ सोचने लगा, फिर एक कुर्सी खींचकर मां के पास बैठ गया।
“हाँ, मां, बोलो क्या बात है ?” निलेश गहरे सोच में डूबते हुए पूछा।
“बात क्या होगी बेटा, सोच रही हूं कि बहू को गए हुए दो महीने से अधिक हो गए, वसंत पंचमी का पर्व आने वाला है, अगर तुम कहो तो उसे बुला भेजूं।” मां ने निलेश का मन टटोलने के उद्देश्य से पूछा।
“मुझसे यह सब मत पूछो,माँ” निलेश ने क्षुब्धता भरी आवाज में कहा, “जो तुम चाहो, करो। आज तक मैंने अपने परिवार के हर सदस्य की इच्छाओं को निभाया है, लेकिन मेरी पत्नी ने उस इज्जत का कोई मूल्य नहीं समझा। जितना उसे इस घर में सम्मान मिला, उतना ही वह सर पर चढ़कर नाची। मैं, समाज, और परिवार को यह सब दिखलाते हुए घुट रहा हूं।”
निलेश की बातों में लंबे समय से दबी हुई शिकायत छलक कर बाहर आ रही थी।
“ऐसा नहीं सोचते बेटा, एक दिन सब ठीक हो जाएगा,” मां ने उसे दिलासा देने की कोशिश की।
“खाक ठीक होगा! यह दिलासा ही तो है, जिसके चलते सप्ताह, महीने और साल बीतते चले जा रहे हैं!” निलेश ने गुस्से का इजहार करता हुआ मां को वहीं छोड़कर भीतर चला गया।
मां कुछ न बोली। वह वहीं बैठी रही, और बार-बार सोचने लगी, “क्या निलेश गलत कहता है? कोई बहू को समझनेवाला नहीं है। वह न पति को समझती है, न ससुराल को। आखिर वह किस दुनिया में रह रही है? क्या यह सब जानबूझकर है, या किसी और के बहकावे में?”
मां की सोच में निरंतर बदलाव आ रहे थे। तभी निलेश की आवाज आई, “मम्मी, वहां क्या कर रही हो? भीतर आ जाओ।”
“आ रही हूं, बेटा,” मां बरामदे से कमरे के अंदर चली गई।
निलेश के घर में बहुत लोग नहीं रहते थे। निलेश के पिता उज्जैन में एक सरकारी बैंक में कैशियर थे, और महीने में एक या दो बार घर आते-जाते थे। निलेश का छोटा भाई नवलेश, जो बारहवीं कक्षा में था, गांव के बगल के स्कूल में पढ़ता था। मां, हालांकि बूढ़ी नहीं थी, लेकिन हमेशा ठेहुने के दर्द से परेशान रहती थी। घर में कुल तीन सदस्य थे, और जब कभी निलेश के पिता घर आते, तो चार हो जाते।
निलेश की पत्नी साधना का व्यवहार कुछ अजीब था। वह अक्सर घर आती तो थी, लेकिन शाम आती सुबह चली जाती या सुबह को आती शाम को लौट जाती। उनका मुख्य उद्देश्य सिर्फ आराम करना था। वह चिकनी-चुपड़ी बातें करने में माहिर थी, लेकिन असलियत में उनका इरादा कुछ और ही था।
निलेश की मौसी देवास में रहती थी, और उसका एक बेटा, साहिल, बाइक के एक शो रूम का मालिक था। साहिल के काम के सिलसिले में वह उसी बैंक में आता-जाता था, जहाँ निलेश की पत्नी साधना कार्यरत थी।
एक रविवार को साहिल अपनी मौसी से मिलने इंदौर आया था। उसने निलेश से कुछ इस तरह से बातचीत शुरू की, “बहुत बुरा समय आ गया है निलेश। आजकल जिनपर विश्वास करते हैं, वही धोखा देते हैं, जिनको दोस्त समझते हैं, वही पीठ पीछे छुरा घोंपते हैं। और कुछ पत्नियां भी—”
साहिल को बीच में रोकते हुए निलेश ने कहा, “छोड़ो, पत्नी-वतनी की बातें। कुछ और बात करो।”
“तुम्हे पत्नी के नाम से इतना चिढ़ क्यों होती है?” साहिल ने आश्चर्य से पूछा।
निलेश चुप हो गया। वह न तो कुछ कहना चाहता था, न ही कुछ सुनना। साहिल, जो देवास में अपने कामकाजी अनुभव से कुछ जान चुका था, अब अपनी बात खोलने का सही मौका देख रहा था।
असल में, साहिल के पास देवास में एक बड़ा कारोबार था और उसे उस बैंक में भी आना-जाना होता था, जहाँ निलेश की पत्नी काम करती थी। वहां के शाखा प्रबंधक से उसकी अच्छी पहचान थी। एक दिन शाखा प्रबंधक के ऑफिस में बैठते हुए साहिल ने उनसे निलेश की पत्नी के बारे में कुछ बातें सुनीं, जो उसे बहुत चौंकाने वाली लगीं। शाखा प्रबंधक ने निलेश की पत्नी के बारे में कुछ ऐसी बातें की थीं, जो साहिल को पच नहीं रही थीं।
अब साहिल ने मन बना लिया था कि वह इस बारे में निलेश या उसकी मौसी से जरूर पूछेगा कि वह कौन था, जिसके साथ साधना आती-जाती थी, और क्यों वह उससे इतनी दूर-दूर रहती थी।
इधर, साधना को भी इस बात का अहसास हो गया था कि कोई उसकी निगरानी कर रहा है। साहिल से उसकी कई मुलाकातें बैंक में हो चुकी थीं। हालांकि, वह यह समझने में चतुर थी कि कैसे उससे बचना है। लेकिन साहिल ने एक कैशियर से गुपचुप जानकारी ली थी, जिससे उसे सारी सच्चाई पता चलने लगी थी।
साहिल अब निलेश के घर पर था, और निलेश को उम्मीद थी कि साहिल कुछ जानकारी साझा करेगा, खासकर उसकी पत्नी साधना के बारे में। साहिल ने चाय के बाद निलेश को बाहर घूमने के लिए ले जाने का प्रस्ताव रखा। दोनों एक साथ बाहर निकल गए, जहां रास्ते में गपशप हो रही थी। निलेश ने तो सीधे-सीधे साधना के बारे में कुछ पूछना नहीं चाहा, और साहिल भी बिना मौका मिले यह विषय नहीं छेड़ना चाहता था। हालांकि, मौका मिल ही गया। जब निलेश ने साहिल से पूछा, “इधर-उधर के काम से बैंक में आते-जाते हो न?”
साहिल, जो इसके लिए पहले से तैयार था, जवाब दिया, “जाता हूँ, क्यों नहीं? लेकिन मैं भाभी से मिलने नहीं जाता।”
“क्यों?” निलेश ने आश्चर्य से पूछा।
साहिल ने धीरे से जवाब दिया, “आपको नहीं पता क्या? भाभी मुझसे मिलने से कतराती हैं, और उनके चेहरे पर ऐसा कोई संकेत नहीं होता कि वह मुझे पहचानती हैं या जानती हैं। कई बार जब मैंने उनसे मिलना चाहा, तो उनका व्यवहार बहुत रुखा था, तो मैंने भी अब मिलना छोड़ दिया।”
निलेश थोड़ा चौंका, लेकिन फिर उसने कहा, “न मालूम उस औरत को क्या हो गया है! अच्छा छोड़ो, यह बताओ कि मेरे मौसा-मौसी ठीक हैं न? तुम्हारा घर कैसे चल रहा है ?”
साहिल ने जान-बूझकर निलेश से कोई गहरी बात नहीं की, और कहा, “मेरा तो ठीक है, और आपका?”
निलेश ने फिर हल्के अंदाज में जवाब दिया, “अरे, मेरा क्या छोड़ो, चलो अब घर चलते हैं, बहुत देर हो गई, माँ सोच रही होगी कि हम कहां गए हैं।”
दोनों घर की ओर बढ़े। रात में, साहिल, निलेश, निलेश की मां और उसकी छोटी बहन प्रतिज्ञा ने एक साथ खाना खाया। मां-बेटी एक कमरे में और साहिल निलेश के साथ दूसरे कमरे में सोने गए। प्रतिज्ञा, जो छठे वर्ग में पढ़ती थी और काफी तेज-तर्रार थी, अपने घर-परिवार में सबसे ज्यादा उम्मीदें जगाती थी। लेकिन, वह भी कभी अपनी भाभी से घुलमिल नहीं पाई थी, और साधना हमेशा उससे कतराती रहती थी।
सुबह, निलेश किसी जरूरी काम से बाहर चला गया, और प्रतिज्ञा स्कूल बस पकड़ने चली गई। अब घर में सिर्फ साहिल और उसकी मौसी बच गए थे। साहिल को अब एक अच्छा मौका मिला था। मौसी रसोई में कुछ बनाने में व्यस्त हो गई थीं।
साहिल ने तुरंत मौसी से पूछा, “मौसी, निलेश पत्नी के नाम से इतना क्यों भड़कता है? इतना क्यों चिढ़ता है?”
मौसी, जो निलेश के मानसिक स्थिति से पूरी तरह वाकिफ थी, फिर भी लापरवाही से बोली, “भड़कने की बात क्या है? पति-पत्नी के बीच थोड़ा बहुत अनबन होना तो आम बात है। निलेश भी छोटी-छोटी बातों पर बैठ जाता है। वैसे भी, बहू भी कम नहीं है।”
साहिल ने जिज्ञासा के साथ पूछा, “ऐसा क्या?”
मौसी ने व्यथित होकर कहा, “तुम तो जानते ही हो, जब पति-पत्नी अलग-अलग रहने लगते हैं, तो आपस में वह अपनापन नहीं रहता जो साथ रहने में होता है।”
साहिल ने फिर बात को बदलते हुए कहा, “हाँ, मौसी, सो तो है, लेकिन… अच्छा छोड़ो, तुम्हारी तबियत कैसी है?”
मौसी ने उसे मचलते हुए कहा, “ठीक है बेटा, लेकिन तुम क्या कह रहे थे, क्यों रुक गए? बताओ न।”
साहिल ने झिझकते हुए कहा, “क्या बताऊँ मौसी, कहने की हिम्मत नहीं हो रही है, लेकिन अगर नहीं बताऊं तो एक दिन तुम ही कहोगी कि जब तुझे सब मालूम था, तो क्यों नहीं बताया? ठीक है, मैं बताता हूं। पर इसे किसी अलग रूप में मत लेना।”
मौसी ने चौंकते हुए पूछा, “क्या बात है?”
साहिल ने सिर झुकाते हुए कहा, “वह बैंक जहां भाभी काम करती हैं, वहां उनका रुतबा ठीक नहीं है।”
मौसी ने तुरंत पूछा, “रुतबा से तुम्हारा क्या मतलब है? साफ-साफ बताओ।”
साहिल ने कहा, “मौसी, लोन इत्यादि के काम से मुझे बार-बार उस बैंक में आना-जाना होता है। और इस दौरान मैंने कुछ लोगों से सुनी बातें जो मुझे ठीक नहीं लगीं।”
मौसी ने तुरंत कहा, “तो क्या? वह तो तुम्हारी भाभी हैं। उनसे मिलना कोई गलत बात नहीं है। तुम्हारा फर्ज बनता है कि उनसे जाकर कहो कि तुम उनके बारे में ऐसा सुनते हो। इससे उन्हें सुधरने का मौका मिलेगा। बातचीत से अपनापन बढ़ता है, बेटा।”
साहिल ने सिर झुकाते हुए कहा, “मौसी, तुम सही कह रही हो, यदि भाभी मुझे अपना नहीं समझतीं। वह तो मुझसे कतराती हैं। इसलिए मैं अब बैंक जाने के बाद भी उनसे नहीं मिलता। सीधे काम खत्म करके घर या शोरूम चला आता हूं।”
मौसी, जो पूरी स्थिति को समझ रही थी, बोली, “इतनी अव्यवहारिक हो गई वह! अच्छा, आज मैं निलेश से बात करती हूं।” यह कहकर मौसी साहिल के लिए कुछ खाने-पीने का इंतजाम करने के लिए रसोई में चली गई।
जैसे ही मौसी अन्दर किचेन में गयी तभी निलेश वहां बाहर से काम करके आ गया, जिस कुर्सी पर मौसी बैठी हुई थी उसी पर निलेश बैठकर बोला- “कहो जनाब, मां के साथ क्या कानाफूसी हो रही थी?” मजाकिया लहजे में निलेश बोला.
मैं कोई कानाफूसी नहीं कर रहा था, भैया. बस केवल मौसी से हालचाल कर रहा था और क्या? आप बाहर का काम करके चले आये?
‘हाँ, एक सज्जन से कुछ काम था विद्यालय संबंधी, उन्हीं के पास गया था’
“हो गया काम?”
हाँ, अब बताओ और कया हालचाल है ,एजेंसी कैसी चल रही है?
ठीक है और आपका ? .
“चल रहा है,” आवाज में बहुत उदासी थी. .
“भैया,ऐसे आप क्यों बोल रहे हैं ?”
“हाँ निलेश, शादी के पहले मैं बहुत अच्छा था,बहुत खुश था लेकिन शादी के बाद जैसे किसी की नजर लग गयी हो .”
इसी बात पर एक बात याद आ गयी, इसको भैया आप बुरा नहीं मानियेगा| जो बता रहा हूँ यह आपके दिल को दुखाने के लिए नहीं आपकी भलाई के लिए बोल रहा हूं |
“क्या बताओ तो सही|”
“क्या बताऊं,बोलने में बहुत हिचकिचाहट हो रही है।”
“इसमें हिचकिचाहट की क्या बात है जो सत्य है सो सत्य है। मुझमें सत्य सुनने का हौसला आ गया है, भाई । जो कहना चाहते हो साहिल, उसे खुलकर बतलाओ। न मैं बुरा मानूंगा न किसी से कहूंगा ही | ”
“भैया, मैं कसम खाकर कहता हूँ जो मैं बतलाने जा रहा हूँ उसमे थोड़ा सा भी झूठ नहीं है।”
“ बतलाओगे या किरिया-कसम ही खाते रहोगे।”
अभी बात चल ही रही थी की निलेश की मां चाय एवं पकौड़ी लेकर आ गई। बात को बंद करना पड़ा,बातचीत का सिलसिला टूट गया।लेकिन निलेश के भीतर साहिल की बात जानने के लिए जो उत्सुकता की आग लग चुकी थी,वह बुझ नहीं पायी थी बल्कि वह काफी सुलग चुकी थी।
फिर साहिल,मौसी और निलेश के बीच इधर-उधर की बातें होने लगी। न निलेश चाहता था कि मां के सामने साधना की कोई बात हो न मां चाहती थी की निलेश के सामने बहु के बारे में साहिल से कुछ पूछा जाए। लेकिन दोनों के अंदर साधना देवी की बात जानने के लिए काफी बेचैनी थी। जब मां अंदर चली गई तब निलेश ने साहिल से कहा ” चलो साहिल, मैं तुम्हे अपने गांव के पोखर को दिखलाता हूं,वहां काफी मन लगेगा।”
साहिल भी यही चाह रहा था कि किसी एकांत जगह पर जाकर हमउम्र भैया को उनकी पत्नी के बारे में,जो उसके पास जानकारी थी,बातचीत करे। उस समय तक दोपहर ढल चुका था और शाम होनेवाली थी। धूप काफी आनंददायक लग रहा था। हवा भी धीमी बह रही थी। तालाब पर एक दो आदमी पहले से था। एक एकांत जगह देखकर निलेश ने कहा”आओ साहिल, यहां बैठते हैं।
दोनों एक साफ जगह पर जाकर बैठ गए।बातचीत का सिलसिला निलेश ने ही शुरू किया।
“हां तो साहिल, उस समय क्या कह रहा था भाभी के बारे में?”
“क्या कहें भाई, एक दिन कुछ काम से बैंक में गया और उनसे हालचाल पूछा तो भाभी बहुत बेरुखी से जबाब दी थी। उनका यह व्यवहार बहुत असहज लगा।कुछ लोग तो यह भी कह रहे थे कि यह स्टाफ तो बैंक को घिनाए हुए है।सूना तो यहां तक हूँ कि रोज दिन एक ड्राइवर गाड़ी से आता है और एस० डी० एम० के बंगला पर ले जाता है।ये सब कितना झूठ है और कितना सच है यह मैं दावे के साथ नहीं बता सकता।
“एस० डी० एम० ! निलेश अकचकाया।
“अरे हां, वही है जो तुम्हारी शादी में भी आया था।”
“आएं, यह तुम क्या कह रहे हो ?”
“मुझे तो लगता है वही है,अभी वह देवास का ही एस.डी.एम है| हो सकता है कोई दूसरा भी हो लेकिन मेरा मन कहता है कि वह वही है जो तुम्हारी शादी में उजाला सूट पहनकर आया था और काफी भचर-भचर करता था | ”.
“ऐसा कैसे हो सकता है ! मैं देवास तुम्हारे साथ चलूंगा और इस बात की सच्चाई का पता लगाऊंगा।”
“लगाना ही चाहिए।”
“लेकिन मेरी एक बात ध्यान से सुनो।यह बात मां को मत बताना।”
“ नहीं,नहीं बताऊंगा। मौसी तो एकदम भोली है। वह तो आज भी ————”
“आज भी क्या” निलेश को शंका हुआ। शंका समाधान के लिए पूछा।
“वही मेरी बहु ऐसी तो मेरी बहु वैसी। और क्या ?”
“मां तो मां है उसे तो सारी बुराई मुझमें ही दिखती है।”
“मगर सच्चाई मैं तुमसे बयां करता हूं कि मैं उस औरत से ऊब चुका हूं। न वह मुझसे अलग ही होती है, न वह साथ ही रहती है। मेरा तो मानना है कि विवाहोपरांत एक नई जिन्दगी की शुरुआत होती है। अगर हमसफर अच्छा मिला तो जिन्दगी सुखमय हो जाती है, और अगर बुरा मिला तो जिन्दगी दुखमय।” निलेश ने अपने दिल की बात कह दी।
साहिल ने गंभीरता से उत्तर दिया, “हाँ भैया, आप ठीक कह रहे हैं। लेकिन जाति-समाज शादी के बंधन में तो बांध देता है, लेकिन बंधन से होने वाले कष्ट पर गौर नहीं करता। मैं तो छोटा हूँ भैया, मुझे आपको सलाह नहीं देनी चाहिए, लेकिन भाभी आपके साथ हैं, यह गनीमत है।”
निलेश ने गहरी सांस ली और कहा, “तब क्या करें?”
साहिल ने सुझाव दिया, “सच्चाई का पता लगाइए, यदि सच है तो उससे मुक्ति पाने की युक्ति लगाइए।”
निलेश को साहिल की बात सुनकर अच्छा लगा। वह चाहता था कि साहिल के साथ जाए, लेकिन उसे जाने का ब्योंत नहीं बना। साहिल के लौटने के दो दिन बाद, जब निलेश मास्टरी ड्यूटी पर जाने लगा, तो उसने अपनी मां से कहा, “मां, आज मैं स्कूल से सीधे देवास निकल जाऊंगा। सोमवार को ड्यूटी करते हुए शाम में आऊंगा।” यह सुनकर मां को बहुत अच्छा लगा । हालांकि, मां को यह डर भी था कि कहीं निलेश को अपनी पत्नी से लड़ाई-झगड़ा न हो जाए।
शनिवार का दिन था। निलेश स्कूल के काम को जल्दी निपटाकर देवास के लिए चल पड़ा। रात के साढ़े सात बजते-बजते वह अपनी पत्नी के डेरा पर पहुंच गया। उसने सोचा था कि उस समय तक साधना अपने कमरे में होगी, लेकिन पत्नी के कमरे के दरवाजे पर ताला लटका था। निलेश के पास बैंक के मैनेजर का मोबाइल नंबर नहीं था, लेकिन पता लगाना जरूरी था, इसलिए उसने साहिल को फोन किया और मैनेजर का नंबर मांगा। साहिल ने तुरंत नंबर दे दिया। निलेश ने मैनेजर को फोन किया और अपनी पत्नी साधना के बारे में पूछा। मैनेजर ने बताया कि वह तो चार बजे ही बैंक से निकल चुकी थीं। पत्नी का फोन स्विच ऑफ आ रहा था। अब निलेश के पास इंतजार करने के सिवा कोई और रास्ता नहीं बचा था।
रात के करीब नौ बजे, अपार्टमेंट में एक गाड़ी सरसराती हुई आई, और साधना देवी उतरीं, बिना अपने पति को देखे । निलेश ने गाड़ी की ओर देखा, जिसमें नाम प्लेट थी, लेकिन वह कवर्ड थी, जिससे वह पहचान नहीं सका। फिर भी उसने गाड़ी का नंबर अपने मोबाइल में नोट कर लिया। क्रोध तो था, लेकिन उसने उसे दबा लिया। वह चुपचाप ऊपर चढ़ा और फ्लैट के बाहर लगे कॉल बेल बजाया। साधना दरवाजा खोलने आई, और निलेश को देखकर सकपका गई।
“तुम? अभी?” दरवाजा खोलकर उसने पूछा।
“हां, ड्यूटी से ही आ रहा हूं।”
“तुम पहले बतला देते, बैंक से कुछ सबेरे ही आ जाती, तुम्हें इंतजार नहीं करना पड़ता। अच्छा, आओ, भीतर आओ।” साधना की आवाज़ में बहुत बेरुखी थी।
निलेश अन्दर- अन्दर जल रहा था फिर भी बहुत शांतिपूर्वक बोला, “आज बहुत लेट हो गया, क्या रोज़ इसी वक्त बैंक से आती हो ?”
“हाँ, कभी थोड़ा पहले, कभी थोड़ा लेट।” साधना की आवाज़ में तिरस्कार था।
निलेश ने फिर सवाल किया, “अच्छा, वह गाड़ी किसकी थी, जिससे तुम आई हो?”
यह प्रश्न सुनते ही साधना आग बबूला हो गई,चोर के दाढी में तिनका “यही तुम्हारी आदत बहुत खराब है, बात को पीसने की। मैं किसकी गाड़ी से आई हूं? मैं अपनी गाड़ी खुद चला कर आई हूं और तुमको गाड़ी किसी और की दिख गई? हमेशा शक करते हो तुम!”
“क्या मेरा आदत हो गया है? तुम दिन-रात गलतियां करती जा रही हो और जब कुछ पूछता हूं, तो मेरा आदत खराब हो जाता है। मैं अपनी गाड़ी भली-भांति पहचानता हूं। वह गाड़ी मैंने अपनी कड़ी मेहनत से खरीदी थी , मैं कैसे भूल सकता हूं?” आवाज में स्वाभिमान और क्रोध दोनों का मिश्रण था।
“छोड़ो, किसका पैसा और किसका नहीं, इससे अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।”
“फिर किस बात से तुम्हें फर्क पड़ता है?” निलेश ने पूछा।
“चुप रहो, आते ही मूड खराब कर दिया और बात को बढ़ा रहे हो। क्या तुम्हें यह जानने का अधिकार है कि मुझे किससे फर्क पड़ता है?” साधना तीखी आवाज़ में बोली । फिर कुछ सोचते हुए कही , “आज मैं बहुत थकी हूं, बाजार से कुछ खाना-पानी लाना पड़ेगा।”
“क्या मेड नहीं आई थी आज?” निलेश ने पूछा। उस समय निलेश की हर बात साधना को बहुत नागवार लग रही थी।
“क्या तुम्हें इससे कोई फर्क पड़ता है, आई थी या नहीं? बड़ा समझदार बनता है। हां, मेड नहीं आई थी, उसकी तबियत ठीक नहीं थी।” साधना की आवाज में झुंझलाहट थी।
“ठीक है, तो मैं बाहर जाता हूं और कुछ खाने का सामान लाता हूं। बोलो, क्या लाऊं?” निलेश का लहजा में हमदर्दी थी | “रहने दो, अपने लिए ले आओ, मुझे अब खाना नहीं खाना है।” साधना ने बेरुखी के साथ जवाब दिया।
“क्यों, मैं केवल अपने लिए क्यों लाऊं?” संयमित ढंग से मामला को निलेश सलटना चाहा ।
“आते-आते तोहमत लगा दी और पूछते हो कि क्यों? अपने को बहुत चालाक बनते हो?” साधना ने ताना मारा।
अब निलेश का सब्र टूट चुका था। बहुत देर तक साधना को झेल रहा था| अब सब्र का बाँध टूट चुका था| उसके लिए अब चुप रहना मुश्किल हो रहा था।
“तुम यहां क्या-क्या करती हो और किस-किस के साथ घूमती-फिरती हो, ये सब मुझे पता है,” निलेश की आवाज में क्रोध और तिरस्कार दोनों थे।
“क्या पता है? जरा मैं भी तो सुनूं?” मुंह चमकाते हुए साधना बोली।
“क्या बताऊं? क्या तुम सत्य को सुन सकोगी ? अगर तुम्हें मुझसे कोई संबंध नहीं रखना है और किसी दूसरे के साथ रहना है तो साफ-साफ कह दो। अपना-अपना रास्ता अलग कर लो, तुम भी शांति से जीओ और मुझे भी शांति से जीने दो | क्यों किसी को धोखा में रखती हो ? ” याचना भरी आवाज में निलेश ने कहा ।
“है कोई मेरे खिलाफ तुम्हारे पास कोई प्रूफ?” साधना का प्रत्युत्तर था।
“हां है,”
“क्या ?”
“अनुराग के पास क्या करने…”
“चुप रहो | अपने गंदे जुबान से उस देवता का नाम मत लो,” साधना गुस्से में बोली।
“वह देवता कब से हो गया?” व्यंग्यात्मक लहजे में निलेश बोला ।
“तुम क्या जानो उनके बारे में ? मैं यहाँ रहती हूं, पूरा शहर उन्हें बहुत अच्छी नजर से देखता है,” साधना अपना बचाव कर रही थी।
“उनके बारे में ! कितना सम्मान है उसके लिए? उसके बारे में मैं क्या नहीं जानता हूं। आज वह एडमिनिस्ट्रेटिव अफसर बन गया, तो कल का सारा कुकृत्य धूल गया। विद्यार्थी जीवन में कितनी लड़कियों से डांट फटकार खाई थी। वह कब से देवता बन गया?” आवाज में व्यव्ग्य था ।
“सब झूठ, सब बेबुनियाद,” साधना उसकी बातों को सिरे से काटती हुई बोली।
“हां-हां, तुम ही उसके साथ पढी-लिखी थी| कल उसके ऑफिस में जाकर उससे साफ-साफ शब्दों में पूछता हूं कि तुम्हारा क्या चक्कर है मेरी पत्नी के साथ ?” उसकी आवाज में आक्रोश था।
यह सुनते ही साधना का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने दायें हाथ की अंगुली को दिखाते हुए धमकी भरे अंदाज में कहा, “देखो, तुम यह सब बोलकर मुझे टॉर्चर मत करो। मां और भाई के बहकाने में तुम मेरे साथ अच्छा नहीं कर रहे हो। मैं जब अपने पर आ जाऊं, तो तुम्हें बहुत महंगा पड़ेगा।”
“और तुम मेरे साथ अच्छा कर रही हो?” संयम बरतते हुए निलेश ने पूछा।
“तुम मेरे साथ ऐसा करोगे तो मैं कैसे अच्छा करूंगी? मैंने तो तुम्हें कई बार कहा है कि न तुम मेरे लायक हो न मैं तुम्हारे लायक हूं। यदि दोनों का नहीं पट रहा है, तो तुम क्यों नहीं मुझे अपनी तरह से जीने देते ? कान खोलकर सुन लो मैं आजाद जीवन जीना चाहती हूं, तुम जैसे देहाती और गंवार आदमी के साथ नहीं रह सकती,” साधना ने जवाब दिया।
“तो मुझे छोड़ क्यों नहीं देती? तुम तो न मुझे मरने दे रही हो, न जीने दे रही हो। तुम्हारा कारनामा सुन-सुनकर कान पक गए हैं, कभी इसके साथ तो कभी उसके साथ। मैं तो तुम्हारा कुछ हूं ही नहीं ,” निलेश ने चिढ़ते हुए कहा।
“रहोगे कैसे?”
“क्यों?”
“मूंह मत खुलवाओ! मुझे यहाँ रहना है, हल्ला-हुज्जत मैं नहीं चाहती। तुम जिसके साथ रहकर रहस-बौरी करते हो, करो!” साधना भी निलेश पर कीचड उछाली।
“क्या बोल रही हो? मेरा जीवन को तहस-नहस करके उल्टे मुझ पर इल्जाम लगा रही हो। थोड़ी भी तरस नहीं आती ?” निलेश ने उसकी बात को खारिज करते हुए कहा।
“नहीं आती! जो करना है कर लो, जैसे आजमाना हो आजमा लो,” उसकी आवाज में दंभ और ऐठन का समावेश था।
“हां हां, एस.डी.एम जो तुम्हारे पीछे है ?”
“और तुम्हारे पीछे छैल-छबीली माधुरी जो है जिस पर तुम दिन-रात फ़िदा जो रहते हो, उसका क्या?” साधना ने तंज किया।
यह सुनते ही निलेश का चेहरा उतर गया। उसे कभी ऐसा एहसास नहीं हुआ था कि माधुरी से बातचीत की बात यहां तक पहुंच चुकी है।
दरअसल, माधुरी साधना की कभी रूममेट रह चुकी थी। एक समय दोनों एक ही कमरे में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करती थीं। दोनों का एक साथ बैंक में चयन भी हुआ था, लेकिन माधुरी का दिल बैंक के काम-काज में नहीं रमा। दैवयोग से उसकी नौकरी मिडिल स्कूल के शिक्षक के रूप में हुई और उसका पदस्थापन निलेश के स्कूल में सहायक शिक्षिका के रूप में हुआ। तब से वह स्कूल में अध्यापन का कार्य कर रही थी।
“मेरा कोई चक्कर-बक्कर नहीं है किसी के साथ। जैसी तुम हो, वैसा ही सभी को समझती हो,” निलेश ने अपना बचाव किया।
“देखो, मुझे मत छेड़ो, नहीं तो बहुत बुरा होगा,” धमकी देती हुई साधना बोली।
“अब बुरा होने के लिए बाकी बचा ही क्या है?” दुखी आवाज में निलेश का प्रतिकार था।
” तुम नहीं जानते हो| बदसलूकी के जुर्म में मैं अभी चाहूं तो पुलिस में शिकायत करके तुम्हें मजा चखा सकती हूं, समझा ? भला चाहो तो जितना जल्दी हो यहां से निकल जाओ,” साधना कर्कश आवाज में तीव्रता भरते हुए बोली ।
निलेश के लिए यह क्षण कठिन था। उसे ध्यानपूर्वक निर्णय लेना था। वह शांत रहने का प्रयास करते हुए बोला, “जब तुम मुझे न चाहती हो तो ठीक है, लेकिन आधी रात को मैं कहां जाऊं?”
“यह तुम जानो। यह तुम्हारा गांव नहीं है कि तुम मुझ पर फब्तियां कसते रहो और मैं विवश होकर रात काटती रहूँ । तुम जाओगे तो मुझे चैन मिलेगा,” साधना जिद पर अड़ गयी।
“ठीक है, जब तुम यही चाहती हो तो मैं चला जाता हूं, लेकिन…”
“लेकिन क्या? यहां तुम्हारे रिश्तेदार हैं, कहीं रह लो, होटल में रहो, स्टेशन पर रहो, फुटपाथ पर रहो, लेकिन यहां मत रहो। भूल जाओ कि मैं तुम्हारी पत्नी हूं और तुम मेरा पति,” साधना ने बिना रुके जवाब दिया।
“दे दो न कानूनी रूप से मुक्ति, आभारी रहूंगा,” निलेश ने तंग होकर कहा।
“ऐसे ही मुक्ति दे दूंगी, मुझ पर तुम और तुम्हारे परिवार ने जो ज्यादतियां की हैं, सबका हिसाब लूंगी। क्या समझते हो, नारी अबला है?” साधना का स्वर काफी कठोर था।
“हाँ, हाँ, नारी को सबलता दी गई है केवल विनाश के लिए, पुरुषों को शोषण करने के लिए, दोहन करने के लिए, अपना झूठा अहंकार दिखाने के लिए, और मर्दों को अपनी जूती के नीचे रखने के लिए,” निलेश के स्वर में व्यंग्य था।
“बस, अब ज्यादा उपदेश मत दो। बहुत हुआ मर्दों का अत्याचार। अब हम नारी नहीं सहेंगे पुरुषों का अत्याचार। अब वह अबला नहीं रही, अब वह सबला है। उसके पास कानूनी अधिकार है, और उसकी बात के आगे तुम्हारे सारे सबूत टाय-टाय फिस्स हो जाएंगे। जब से महिलाएं बाहर और भीतर जाने लगीं, तब से वह मर्दों की दासी नहीं रही, और अब जिंदा लाश बनकर खानदान की इज्जत और आबरू के लिए नहीं जिएगी,” कड़े शब्दों में साधना का जबाब था ।
“तुम सही कह रही हो, यही कानूनी हथकंडा तो दांपत्य जीवन में आग लगा देता है।जो क़ानून महिलाओं को अपना बचाव करने के लिए मिला था, जीवन दीप जलाने के लिए मिला था, खुशियों के साथ घर बसाने के लिए मिला था उसका उपयोग महिला कर रही है पति के घर उजाड़ने के लिए, दांपत्य जीवन को नरक बनाने के लिए, कानूनी आतंकवाद फैलाने के लिए। दो परिवारों के बीच एक गहरी खाई बनाने के लिए,” निलेश ने गहरी उदासी के साथ कहा।
“जल्दी जाओ यहां से, वरना बात बहुत बढ़ जाएगी। बड़ा चले हो पाठ पढ़ाने। अब से जान लो, मेरा तुमसे कोई रिश्ता नहीं है,” साधना ने उसे टोकते हुए कहा।
“ठीक है, जा रहा हूं, लेकिन एक बात कहकर जा रहा हूं। बाद में तुम पछताओगी,” निलेश बोलते हुए घर से बाहर निकल गया।
“आंख चिआड कर देखना, कौन पछताता है?” साधना बड़बड़ायी ।
निलेश ने अपना हैंडबैग उठाया और बाहर निकल गया। दरवाजे के बाहर निलेश के निकलते ही साधना ने दरवाजा धड़ाम से बंद कर लिया।
निलेश जब घर पहुंचा तो उसके पिताजी भी विदिशा से आए हुए थे। वे दरवाजे पर खड़े थे। उन्हें पता था कि उनका बेटा देवास गया था, लेकिन रविवार की सुबह-सुबह निलेश का घर लौटना उनके दिमाग में कुछ सवाल पैदा कर गया। फिर भी वे कुछ नहीं बोले। निलेश ने पापा का चरण स्पर्श किया और सीधे घर के अंदर चला गया। अंदर उसकी मां किचन में व्यंजन बना रही थी। निलेश को देख कर मां चौंक गई। वह समझ गई कि साधना ने कुछ-न-कुछ भला-बुरा जरूर कहा होगा, तभी निलेश रात को ही घर लौट आया।
“क्या हुआ बेटा, फिर कुछ उल्टा-सीधा किया क्या उस चुड़ैल ने?” मां चिंता जताती हुई बोली ।
“हां मां, अब उसके साथ एक पल भी रहना असंभव है,” निलेश आक्रोशित था ।
“आखिर ऐसा क्या हुआ कि तुम अभी ही आ गए?” मां ने पूछा।
“वहां मुझे काफी जली-कटी सुनाई, धमकी भी दी। महिलाओं को कानूनी अधिकार मिल गए हैं, उसी का फायदा उठा रही है। और क्या?” निलेश ने बताया।
“मां, कल जब स्कूल जाऊंगा तो इस बात को छिपाकर नहीं रहूंगा। अपनी स्थिति सबको बताऊंगा। कुछ-न-कुछ रास्ता तो निकलेगा ही। हमारे विद्यालय में एक टीचर हैं, अयोध्या बाबू। उनके पास बहुत तजुर्बा है। वह कुछ रास्ता जरूर निकालेंगे,” निलेश ने विश्वास के साथ कहा।
मां-बेटे की बातचीत के बीच राम दयाल बाबू दरवाजे से अंदर आए। निलेश की स्थिति को लेकर वे भी दुखी थे, लेकिन वह कभी भी निलेश को हतोत्साहित करने वाली बात नहीं करते थे। उस दिन उन्होंने निलेश से कई सवाल पूछे।
“क्या तुम उसके साथ जीवन-बसर कर सकते हो? क्या तुम उसके साथ रह लोगे?”
“नहीं, बिल्कुल नहीं, पापा। अब यह असंभव है,” निलेश ने जवाब दिया।
“क्या तुम इस बात से अवगत हो कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पत्नी को छोड़ना बहुत कठिन है?”
“हां, जानता हूं, लेकिन इतना ज्यादा नहीं,” निलेश ने उत्तर दिया।
“तो जान लो बेटा। बुझ के बाझना ठीक है, लेकिन बाझ के बुझना होशियारी नहीं है।”
“तो क्या करूं? आप ही बताइए,” निलेश ने परेशान होकर पूछा।
“मैं उसके पापा से बात करता हूं। मुझे लगता है कि बातचीत से बहुत सारी समस्याओं का हल निकल सकता है,” राम दयाल बाबू ने कहा।
“मैं जहां तक समझता हूं, इससे कोई फायदा नहीं होगा,” निलेश ने नकारात्मक रूप से जवाब दिया।
“ठीक है, एक बार प्रयास तो किया जा सकता है,” राम दयाल बाबू ने दृढ़ता से कहा।
“कर लीजिए, पता चलेगा कि जस बाप तस बेटी,” निलेश शंका जताते हुए कहा।
“जानता हूं, फिर भी एक प्रयास करके देखता हूं,” राम दयाल बाबू ने आशा व्यक्त की।
बाप-बेटा दोनों थके हुए थे। वे मुंह-हाथ धोने चले गए, और मां किचन में नाश्ता बनाने में व्यस्त थी।
नाश्ता तैयार होने पर तीनों ने पहले निबाले के लिए चम्मच उठाए ही थे, तभी निलेश का मोबाइल बजा—ट्रिंग ट्रिंग।
“हैलो,” निलेश ने फोन उठाया।
“मैं,शालिनी, बोल रही हूँ.” उधर से आवाज आयी
“शालिनी? माफ़ कीजिएगा, पहचाना नहीं।”
“तुरत पहचान जाएगा, मैं अनुराग चौधरी की पत्नी,शालिनी, बोल रही हूं.’
“ नमस्कार भाभी जी, नमस्कार। हाँ, बताईये कैसे-कैसे याद करना हुआ।क्या हालचाल है?
“हालचाल क्या रहेगा; कुछ पता है आपकी पत्नी देवास में क्या गुल खिला रही हैं ?”
“क्या भाभी जी,क्या? यह आप क्या कह रही हैं?” निलेश की आवाज में अनभिज्ञता थी|
“ठीक कह रही हूं।आपकी पत्नी और मेरे पतिदेव के बीच प्रेम-प्रसंग चल रहा है, बैंक से मेरे पति का ऑफिस और ऑफिस से बैंक| दोनों जगह के लोग क्या क्या नहीं बोल रहे हैं. आपको कुछ जानकारी है या नहीं?”
“यह तो मुझे नहीं पता लेकिन देवास का एक संबंधी यह जरूर कह रहा था कि मेरी पत्नी का किसी से चक्कर है। मैं कल देवास गया भी था। इस बात पर उससे बकझक भी हो गया था। ऐसा है तब आप कोई लीगल एक्सन क्यों नहीं लेती हैं ?
“आपका साथ मिलेगा?”
“क्यों नहीं, भरपूर साथ मिलेगा। आप अपने पति से त्रस्त हैं और मैं अपनी पत्नी से। एक प्रयास से यदि दोनों की जिन्दगी संभल जाए तो इसमे हर्ज क्या है?
“अनुराग का इस विषय पर क्या कहना है ?” आगे निलेश ने पूछा.
“उसका क्या कहना रहेगा? वही हमेशा की भांति। तुम गलत समझती हो, उससे मेरा कोई संबंध नहीं है, वह ऐसे ही आती-जाती है आदि आदि।”
“भाभी जी, मैं ऐसा सपना में भी नहीं सोचा था कि अनुराग ऐसा होगा। हां, मैं मानता हूं विद्यार्थी जीवन में उससे कुछ गलत हुआ था। वह समय ही ऐसा होता है कि किसी से भी थोड़ी बहुत गलती हो जाती है।लेकिन एक जिम्मेवार पद पर रहते हुए।छी!छी!”
‘निलेश जी,आपसे आग्रह है कि उस चुड़ैल से मुझे मुक्ति दिलाने में मदद कीजिए।”
“बिना कानूनी रास्ता अपनाए फर्रे पाना मुश्किल है, भाभीजी.”
“तो आप तन मन से साथ देंगे न ?”
“हाँ, हाँ बेशक, कसम से”
“ओके, ठीक है फिर बात करती हूं ,ओके बाई।”
“बाई ” इतना बोलकर निलेश फोन काट दिया. शालिनी से बात करके निलेश आया तबतक राम दयाल बाबू और उसकी मां खाना खाकर उठ चुके थे। निलेश फिर वही थाली में खाने के लिए बैठ गया।
रात में निलेश के जाने के बाद साधना अपने मन को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन जितना वह भूलने की कोशिश करती, उतना ही वह जाल में फंसती जा रही थी। कभी वह सोचती कि अनुराग को फोन करे, फिर रुक जाती। धीरे-धीरे, वह निलेश को सबक सिखाने का एक षड्यंत्र रचने लगी।एन केन प्रकारेन करवट बदलते-बदलते भोर होने लगा|
अभी सूरज नहीं निकला था, सुबह का हल्का अंधेरा था कि साधना ने अनुराग को फोन लगाई और रात की सारी घटना को सविस्तार बताई। अनुराग को यह सुनकर गुस्सा आ गया। फोन पर ही उसने कहा, “उस मेडीओकर मास्टर का ऐसा हिम्मत! चलो उसको मजा चखाते हैं ”
“उसका पक्का पता चल गया है कि मेरे और तुम्हारे बीच प्रेम-प्रसंग है। मैंने उसे बार-बार झुठलाने की कोशिश की, लेकिन वह अपनी बात पर अड़ा हुआ है। वह कह रहा था कि हमारे रिश्ते का पुख्ता प्रमाण उसके पास है।”
“चिंता की कोई बात नहीं है। एक केस फाइल कर दो, उसकी होश ठिकाने लग जाएगी,” अनुराग की ध्वनि में प्रतिशोध परिलक्षित हो रही थी।
“झूठा केस कौन लेगा, कैसे होगा?” साधना अपनी चिंता व्यक्त की ।
“मैं स्थानीय थाने में कह दूंगा, वहां सब मैनेज हो जाएगा। इतना धारा लगा दिया जाएगा कि उसकी सारी हेकड़ी ठिकाने लग जाएगी।”
“कब करें?”
“आज ही कर दो। मैं सब संभाल लूंगा। युद्ध और प्रेम में उचित-अनुचित नहीं देखा जाता। तंग करके तलाक दे देना। मैं भी शालिनी को उसकी धूर्तता का मजा चखा देता हूँ, उसे भी किनारे लगा देता हूँ | फिर हम दोनों खुशी से साथ रहेंगे।”
” तो क्या करना होगा?”
“बस थाने पर जाओ, एस.एच.ओ से अपना नाम कहो, सब कुछ मैनेज हो जाएगा।”
“ठीक है, आज जाती हूं।”
“अवश्य, डरने की कोई बात नहीं है। मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा। अब मुझमें और तुममें क्या फर्क रह गया है? हम दोनों मिलकर लड़ेंगे और जीतेंगे। गुड लक!”
“ठीक, ओके, बाई।”
उस दिन जब निलेश विद्यालय से आया, तो वह काफी थका हुआ महसूस कर रहा था। वह बिछावन पर लेट गया और टीवी पर न्यूज देखने लगा। एक न्यूज चैनल पर खबर चली, जिसका कैप्शन था: “एस.डी.एम पर उसकी पत्नी के द्वारा केस दायर”।
निलेश ने उत्सुकता से खबर देखी। इसमें बताया गया था कि एक महिला ने अपने पति एस.डी.एम पर दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा का आरोप लगाया है। इस अफसर पर यह भी आरोप है कि उसने अपनी पत्नी को मारपीट कर फ्लैट से बाहर निकाल दिया और बैंक में कार्यरत एक महिला के साथ अवैध संबंध रखे हुए है । मामला जांच में था और जांच तक अफसर को निलंबित कर दिया गया था।
यह खबर सुनकर निलेश को खुशी और दुख दोनों हुआ। खुशी इसलिए कि अब वह अपनी पत्नी की स्थिति को समझ सकता था, लेकिन दुख इस बात की थी कि उसकी पत्नी का नाम इस मामले में आया था।
निलेश ने तुरत शालिनी को फोन किया।
“हां, निलेश जी, मैं शालिनी बोल रही हूं,” उधर से आवाज आई।
“आज टीवी पर क्या देख रहा हूं?”
“ठीक देख रहे हैं, वही मैंने कहा था न? अभी तो सस्पेंड ही हुआ है, उसे मजा खूब चखा कर रहूंगी,” शालिनी ने गर्व से कहा।
“मेरी जहां भी जरूरत होगी, बेहिचक कहिएगा, मैं आपके साथ हूं|”
“मेरे पास साधना और अनुराग के कुछ आपत्तिजनक फोटोग्राफ्स भी हैं,” शालिनी ने रहस्य उद्बोधन किया ।
“अच्छा, तब तो लड़ाई लड़ना अनुराग के लिए काफी मुश्किल होगा,” निलेश ने कहा।
“यही तो, अब आटा चावल का दाम समझ में आएगा। आप भी एक मुकदमा क्यों नहीं दायर कर देते?”
“मैं क्या करूं? साधना ने मुझ पर झूठा केस दायर कर दिया है। महिला थाना ने बिना प्रमाण के केस रजिस्टर कर लिया। उसने तो मेरे माता-पिता और छोटे भाई को भी आरोपी बना दिया है,” निलेश की आवाज में काफी वेदना और निराशा थी।
“मैं तो पहले ही कह रही थी कि आप भी पत्नी पर मुकदमा दायर कर दीजिये, लेकिन नहीं किया। उसी का परिणाम भुगत रहे हैं,” शालिनी ने समझाया।
“चलिए, भाभी, ईश्वर सबका हिसाब करेगा। आप भी शिकार हैं और मैं भी।”
“यह सब कब हुआ?”
“पता तो अब चला है, लेकिन केस तो देवास से आने के एक दिन बाद ही कर दिया था,” निलेश ने बताया।
“हिम्मत से काम लीजिए। सब ठीक हो जाएगा। फरेब चाहे जितना ताकतवर हो, सत्य हमेशा उसकी मजबूती से मुकाबला कर लेता है, यही आज तक का इतिहास रहा है,” शालिनी ने कहा।
“हां, भाभी जी, आप ठीक कह रही हैं।”
तभी निलेश की मां नाश्ता लेकर आई। निलेश ने फोन काटते हुए कहा, “बाद में बात करता हूं, भाभी जी।”
“फरेब चाहे जितना ताकतवर हो, सत्य हमेशा उसकी मजबूती से मुकाबला कर लेता है, यही आज तक का इतिहास रहा है।“ शालिनी की यह बात निलेश को आत्म विश्वास से भर दिया|