महाकुम्भ

आद्यात्मिक समागम एक, देव संस्कृति का मेला है।
अमृत कुम्भ की बूंदों से, वो आचमन करती बेला है।
सदियों से ही कुम्भ होता, बारह वर्ष का संगम है।
त्रिवेणी के तट पर देखो, महाकुंभ सनातन मेला है।।
यह सिर्फ मेला नहीं है, आस्था का वह सैलाब है।
धर्म की अधर्म पर विजय, प्रायश्चित प्रक्षाल लाभ है।
मन में बस उच्च विचार, पापों का करते है सँहार।
साधु सी ऊर्जा भरने का, ये देवत्व धरने का मेला है।।
त्रिवेणी के तट पर देखो, महाकुंभ सनातन मेला है—
पुण्य काल पुण्य योग में, आते जब कुम्भ वृहस्पति।
सुर्य की भी चाल देखो, उत्तरायण होती उत्तम गति।।
बारह वर्ष में बनता सुयोग, अमृत सरिता सार वही,
सुख शान्ति सम्रद्धि भरने, अमृत घट का मेला है।
त्रिवेणी के तट पर देखो, महाकुंभ सनातन मेला है—
महाकुंभ स्न्नान से हो जाते, धर्म साधक विचार भी।
मन मे न हो त्याग साधना, बदले कैसे कुविचार भी।
तन को तो निर्मल करता, मन त्याग से होता निर्मल।
सन्तों को तुम तट पर देखो, संगम त्याग का मेला है।
त्रिवेणी के तट पर देखो, महाकुंभ सनातन मेला है—
(कवि व लेखक– डॉ शिव ‘लहरी’)