सफरनामा
“सफरनामा”
ये हवाओं! जरा मुस्कुराओ सब्र करो,
चमन यहीं खिलकर तुम्हें खुशबू से सराबोर कर देगा।
यह जिंदगी नहीं है शब की मोहताज,
वक्त गुजरने दे आफताब उगकर भोर कर देगा।।
बंदे मंजिल की ना सोच,
ये डगर तो उस मंजिल तक जाती ही है।।
तेरा वजूद और यह खुद्दारी,
सारे जहां में समाती ही है।।
तू शबनम है नूर है राम का,
इस नूर को उस नूर से मिलाती ही है।
जिंदगी तो है एक फलसफ़ा सफरनामे का,
तेरे वजूद पर राम की रहमत बरसाती ही है।।
सोच ले चंद लम्हे ही,
काफी नहीं इस डगर के लिए।
पाना है उसे तो लगा दे,
ता जिंदगी सफ़र के लिए। ।
डॉ रवींद्र सोनवाने बालाघाट