और फिर इक रोज,आप अपनी हकीकत
और फिर इक रोज,आप अपनी हकीकत
को खो देते हैं.
यथार्थ से मुंह,चुराने वाले ,कहीं के नहीं रहते.
और फिर धीरे-धीरे ,आप तस्वीरों में भी
अकेले रह जाते हैं।।
और फिर इक रोज,आप अपनी हकीकत
को खो देते हैं.
यथार्थ से मुंह,चुराने वाले ,कहीं के नहीं रहते.
और फिर धीरे-धीरे ,आप तस्वीरों में भी
अकेले रह जाते हैं।।