कामरेडों का गिरगिटिया दर्शनशास्त्र (Chameleon Philosophy of Comrades)
पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवाद कोई नई बात नहीं है । यह उसी संकीर्ण व महजबी मानसिकता की उपज है जिसकी वजह से भारत का विभाजन हुआ था। वह पहले भी था तथा अब भी है । भारत को इसका खामियाजा सबसे अधिक भुगतना पड़ा है । विभाजन से लेकर अब तक भारत के सामने यह समस्या सदैव खड़ी रही है । देश की प्रगति में यह एक बहुत बड़ी बाधा बना हुआ है । गहरे रूप से देखा जाए, तो इस आतंकवाद की जड़े आपको भारत में ही मिल जाएंगी। भारत में जयचंदों की कमी नहीं है। हम बार-बार आतंकवाद की घटनाओं पर विदेशी हाथ कहकर चुप्पी साध लेते हैं लेकिन यह पूरा सच नहीं है । हमारे देश के भीतर भी अनेक देशद्रोही बैठे हुए हैं । जब तक उन पर लगाम न लगाई जाएगी तब तक हम आंतकवाद को समाप्त न कर पाएंगे । अमरनाथ यात्रियों पर हमला हुआ तथा तीर्थयात्री मारे गए । किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा । लेकिन यदि मुसलमान या ईसाई मारे जाते, तो पूरी दुनिया में हो-हल्ला मच जाता तथा भारत मं अल्पसंख्यक खतरे में पड़ जाते । हिंदुओं के मरने से किसी को कोई लेना-देना नहीं है लेकिन मुसलमानों या ईसाइयों के मरने पर सबको पीड़ा होने लगती है । सबको सनातन भारतीय संस्कृति के सर्वधर्मसमभाव के उपदेश याद आने लगते हैं । कितने स्वार्थी हो गए हैं हमारे देश के राजनीतिक दल व उनके नेता । गद्दारी करने में ये किसी भी सीमा तक जा सकते हैं । इस आतंकवाद को उपजाऊ भूमि कौन देता है? कहां से मिलती है इसको खुराक? आंतकवाद को चिंतन कौन प्रदान करता है ? पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवाद को धूप, पानी व हवा इस समय कम्युनिस्टों से मिल रही है । इन्हीं से इस्लामी उग्रवादी मार्गदर्शन ग्रहण करते हैं । वामपंथी बुद्धिवादियों व इस्लामी आतंकवादियों के नापाक गठबंधन का सबसे अधिक प्रभाव राजधानी के विश्वविद्यालयों में नजर आता है । तेरह दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले में प्रोफेसर जिलानी का हाथ होने पर भी कुलपति महोदय ने दो सप्ताह तक उनके विरुद्ध कोई कारवाई नहीं की । क्यों? क्योंकि कुलपति स्वयं एक प्रसिद्ध वामपंथी विचारक हैं । बाद में जब जिलानी को निलम्बित किया गया तो इस कारण से नहीं कि वे संसद पर हुए हमले के लिए जिम्मेदार थे बल्कि इसलिए कि वे महाविद्यालय में कई दिन से गैर-हाजिर थे । यह है इन वामपंथियों की देशभक्ति । बाद में इन जिलानी हेतु वहां के प्राध्यापक चंदा भी एकत्र करते रहे तथा उनसे मिलने जेल में भी जाते रहे । ये वामपंथी भारत को एक राष्ट्र ही नहीं मानते अपितु कई राष्ट्रीयताओं वाला देश मानते हैं। इनकी निष्ठा मनु, चाणक्य, विदुर एवं महर्षि पत×जलि में नहीं अपितु एंजल्स, स्टालिन व लेनिन में है । भारत के माक्र्सवादी अब भी कई दशक पीछे रूके बैठे हैं । इनके द्वारा सर्वाधिक समय तक शासित राज्य पश्चिमी बंगाल भिखारी राज्य बना हुआ है । वामपंथ के द्वारा उस राज्य का उद्धार ये पच्चीस वर्षों में नहीं कर सके । देश की आजादी के समय से ही इस्लमी आतंकवादी व ये कम्युनिस्ट सहयोगी रहे हैं । भारत को उसके मूल से अवगत कराने में इन दोनों ने सदैव बाधाएं डाली हैं । अपनी संस्कृति व जीवन-मूल्यों के प्रति इंहोंने सदैव हीनभावना भरी है । पाकिस्तान का निर्माण करने वाला जिन्ना स्वयं वामपंथी ही था । कश्मीर समस्या को जन्म देने वाले हमारे प्रथम प्रधानमंत्री स्वयं वामपंथ के प्रबल समर्थक रहे हैं । चीनी सेना को इंहोंने स्वयं 1962 में मुक्ति सेना कहा था । सुभाष जैसे क्रांतिकारी को इंहोंने जापानी सम्राट का कुत्ता कहा था । अनेक देशद्रोहपूर्ण शब्दों को जन्म देने हेतु जिम्मेवार हैं ये कामरेड लोग । देशद्रोह को पता नहीं हमारे नेता, हमारा संविधान तथा हमारे नीति-निर्धारक कैसे परिभाषित करते है। कि ये देश द्रोहियों को खुला घूमने की छूट देने को भी राष्ट्र-निर्माण कहते हैं ।
नेताओं को अरबपति-खरबपति बनाया है, ऐसे में ये सब इसका गुणगान तो करेंगे ही ।
आचार्य शीलक राम