लोकतंत्र या लूटतंत्र? (Democracy or plunder?)
राजनीति में जो लोग हैं, उनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनकी किसी भी विचारधारा के प्रति कोई निष्ठा नहीं होती । अपने स्वार्थ हेतु वे किसी भी पार्टी में जा सकते हैं तथा किसी को भी अपना आदर्श घोषित कर सकते हैं । इनके लिए कोई विचारधारा या अपना राष्ट्र महत्त्वपूर्ण नहीं होता अपितु येन-केन प्रकारेण ये अपने स्वार्थों की सिद्धि ही करना अपना कत्र्तव्य समझते हैं । इस हेतु ये किसी भी सीमा तक जा सकते हैं । इनका आचरण, इनकी जीवन-शैली, इनकी सोच तथा इनका रहन-सहन सब एक ढोंग होता है । एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलटी मारना तो कोई हमारे नेताओं से सीखे । उच्चतम न्यायालय ने चुनावों में ईमानदार व स्वच्छ छवि के लोगों को लाने हेतु तथा भ्रष्ट व आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को रोकने हेतु यह आदेश दिया था कि चुनाव से पहले सब प्रत्याशी अपना पूरा विवरेण देंगे । अपनी राय, आपराधिक रिकार्ड, शिक्षा आदि के संबंध में पहले ही उन्हें बताना होगा।
किसी भी राजनैतिक दल ने इसे स्वीकार नहीं किया तथा एक अन्य लचर कानून बनाकर सब दलों ने आम सहमति से इसे पास भी कर दिया व राष्ट्रपति के पास भेज दिया । आपराधिक छवि के प्रत्याशियों को खड़ा करने, सीमा से कई गुणा धन चुनाव पर खर्च करने, भ्रष्टाचार को बढ़ाने तथा गुंडे व बदमाशों को राजनीति के अखाड़े में उतारने में सारे दल एकमत हैं । तभी तो सबने मिलकर उच्चतम न्यायालय की सिफारिशों को स्वीकृत न करके एक ऐसा कानून पारित कर दिया है जिसमें अपराधी व गुंडे सरलता से विधानसभाओं व लोकसभा में पहुंच सकेंगे । यह है हमारे राजनीति दलों का चरित्र । सब के सब भ्रष्ट, बेईमान व स्वार्थी हैं । सत्ता पक्ष व विपक्ष ने मिलकर एक ऐसे कानून को पारित करवा ही लिया जिससे कि अपरहणकत्र्ता, बलात्कारी व गुडे भी चुनाव लड़ सकेंगे । इससे तो भारत के राजनैतिक दलों ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे गंुडे, बदमाशों व बलात्कारियों के सहारे के बिना चुनाव लड़ ही नहीं सकते । ऐसा करके भी ये सार्वजनिक मंचों से ईमानदारी, परमार्थ, देशभक्ति एवं स्वच्छता की बातें करेंगे । कितने पाखंड़ी, ढोंगी व दोगले चरित्र के हैं हमारे देश के ये नेता । राष्ट्रपति महोदय ने चुनाव सुधार अध्यादेश के कुछ प्रावधानों पर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था । लेकिन सरकार ने मूल अध्यादेश पर ही हस्ताक्षर करने हेतु उनको विवश कर दिया । सभी दल इस षड्यंत्र में शामिल थे । और अब कांग्रेस पार्टी का पाखंड देखिए कि उसने जनता की वाहवाही लूटने हेतु कानून बन जाने के बाद यह शोर मचाना शुरू कर दिया है कि हमें तो उच्चतम न्यायालय की बातें ही स्वीकार्य थी तथा जो कुछ उच्चतम न्यायालय ने चुनाव सुधार प्रस्तुत किए थे वे ही लागू किए जाने चाहिएं ।
इस तरह के दोगले चरित्र का परिचय इस पार्टी ने सदैव ही दिया है । भारत की सारी समस्याओं की जड़ मंे हमें सब कहीं यह कांग्रेस पार्टी ही मौजूद मिलेगी । अब भी छल व कपट करना नहीं छोड़ते हैं ये लोग ।
कोई भी दल राजनीति के अपराधीकरण को रोकने हेतु तैयार नहीं हैं । कोई भी नेता ज्यों-ज्यों ऊपर चढ़ता जाता है, त्यों-त्यों उसके चारों तरफ आपराधिक छवि के गुंडे, बदमाशों की भीड़ बढ़ती जाती है । चुनाव ये लोकप्रियता या अपने किये कार्मों के बल पर नहीं, अपितु गुंडों के आंतक के बल पर जीतते हैं । यह है हमारा लोकतंत्र जिसका गुणगाान करने से हमारे नेता कभी नहीं थकते हैं । इसी लोकतंत्र ने हमारे नेताओं को अरबपति-खरबपति बनाया है, ऐसे में ये सब इसका गुणगान तो करेंगे ही ।
आचार्य शीलक राम