स्वतंत्र
कभी जब हम
खुले आकाश के नीचे
यूँ हीं सहज
खिलखिला उठे
या किसी की
नम आंखों के गम में
अपनी पलकें भिगो बैठे
किसी सूनी रात के अँधियारे में
तारों को निहारते
अन्जाने शक्तिपुंज के लिए
करहा उठे
जीवन के उन सम्पन्न क्षणों में
हम यकायक स्वतन्त्र हो , सहज हो उठे !
——शशि महाजन