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9 Jan 2025 · 1 min read

स्वतंत्र

कभी जब हम
खुले आकाश के नीचे
यूँ हीं सहज
खिलखिला उठे
या किसी की
नम आंखों के गम में
अपनी पलकें भिगो बैठे
किसी सूनी रात के अँधियारे में
तारों को निहारते
अन्जाने शक्तिपुंज के लिए
करहा उठे
जीवन के उन सम्पन्न क्षणों में
हम यकायक स्वतन्त्र हो , सहज हो उठे !

——शशि महाजन

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