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1 Jan 2025 · 1 min read

राजनीतिक गलियारा

शोर से संसद की छत क्यों थरथराती है
क्यों मुखर उदंडता सच को दबाती है

गिन-गिन के लगा रहे हैं सब दाँव पैतरे
क्यों दुष्टता शालीनता को आँख दिखाती है

आलोचना तो* अच्छी नहीं लगती किसी को
ये चाटुकारिता सभी को क्यों सुहाती है

डर के विपत्तियों से न घबराना चाहिए
जब रात बीतती है भोर गुनगुनाती है

औरों को प्यार दोगे तभी प्यार मिलेगा
सदियों से प्यार की ये* रीति चली आती है

ये छोड़के देखो तो लाभ – हानि का गणित
ये जिन्दगी ऐसे ही* नहीं मुस्कुराती है

डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी
sksinghsingh4146@gmail.com
9671619238

Language: Hindi
24 Views

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