आज के दौर का अजब हाल है,रिश्तों का हर तरफ़ बवाल है।
आज के दौर का अजब हाल है,रिश्तों का हर तरफ़ बवाल है।
खेल बन गए हैं अब रिश्ते सभी,सच कहें तो सबमें ही जाल है।
शादियां तमाशा बनी इस कदर,जैसे दिल का कोई सवाल है।
जुड़ते हैं पलभर को, टूटते पल में,मोहब्बत का ये कैसा हाल है।
तलाक अब मज़ाक बना हर जगह,जिंदगी का ये नया कमाल है।
तरक्की के नाम पर खो गए जज़्बात,बस दिखावे का बड़ा जाल है।
समाज प्रोग्रेसिव सही, पर अधूरा,हर दिल में अब खाली ख़याल है।
कहां खो गई वो सच्चाई,जो हर रिश्ते की बुनियाद का हाल है।
इस युग में इंसान अकेला खड़ा,खुशी से ज्यादा ग़मों का सवाल है।