” यह कैसा दौर “
” यह कैसा दौर ”
आज यौवनाचार की प्रधानता एवं मातृत्व से मुक्ति का वातावरण चरम पर है। गर्भपात चिन्तन का विषय नहीं रह गया है। विवाह विच्छेद सरल हो गया है। काफी सीमा तक स्वच्छन्दता और समानता के भ्रम ने स्त्रीत्व को समेट कर रख दिया है।
” यह कैसा दौर ”
आज यौवनाचार की प्रधानता एवं मातृत्व से मुक्ति का वातावरण चरम पर है। गर्भपात चिन्तन का विषय नहीं रह गया है। विवाह विच्छेद सरल हो गया है। काफी सीमा तक स्वच्छन्दता और समानता के भ्रम ने स्त्रीत्व को समेट कर रख दिया है।