ये साल बीत गया पर वो मंज़र याद रहेगा
लग़ज़िशें दिल ये कर नहीं सकता,
फिर वही सुने सुनाए जुमले सुना रहे हैं
गंगा सेवा के दस दिवस (प्रथम दिवस)
छत्रपति वीर शिवाजी जय हो 【गीत】
24/249. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
तबाही की दहलीज पर खड़े हैं, मत पूछो ये मंजर क्या है।
मेरी जिंदगी में मेरा किरदार बस इतना ही था कि कुछ अच्छा कर सकूँ
जहाँ मुर्दे ही मुर्दे हों, वहाँ ज़िंदगी क्या करेगी
प्रेम को भला कौन समझ पाया है
आप पाएंगे सफलता प्यार से।
क़दमों को जिसने चलना सिखाया, उसे अग्नि जो ग्रास बना गया।
वाह क्या खूब है मौहब्बत में अदाकारी तेरी।