सुकून
तुम्हारे मुख से निकले शब्द, मुझे सुकून देते हैं ।
मेरे कानों में मिश्री सा, मधुर रस घोल देते हैं ।।
कहू कैसे तुम्हें ये सब, मुझे तुम ही बता दो अब ।
मुझे नफरत के लायक ही, समझ कर गाली देते हो ।।
तुम्हारे गालों की लाली, मेरा दिल जीत लेती हो ।
मेरे हारे हुए इस दिल को, तुम्ही तो छीन लेती हो ।।
तुम्हें अपना कहूं बेगाना, मेरा हर गीत लेती हो ।
तड़पकर गुस्से में तुम तो, बहुत सी बात कहती हो ।।
तुम्हारे नयनो की भाषा, समझ में मुझको आती है ।
कहो कुछ भी नहीं तुम तो, समझ में मुझको आती है ।।
तेरी आंखें पढी मैंने, तेरा हर रूप देखा है ।
तेरी उलफत भी है देखी, तेरी उलझन भी देखी है ।।
ललकार भारद्वाज