अच्छा नहीं लगता मुझको भीड़ में चलना,
अच्छा नहीं लगता मुझको भीड़ में चलना,
कभी-कभी अपनों की खुशियों की खातिर भीड़ में चला जाता हूं।
जमाना कम ही समझता है खुद की मौज को,जो खुद में डूब गया उसको जमाने से क्या वास्ता।
बृन्दावन बैरागी”कृष्णा”
अच्छा नहीं लगता मुझको भीड़ में चलना,
कभी-कभी अपनों की खुशियों की खातिर भीड़ में चला जाता हूं।
जमाना कम ही समझता है खुद की मौज को,जो खुद में डूब गया उसको जमाने से क्या वास्ता।
बृन्दावन बैरागी”कृष्णा”