#सम_सामयिक
#सम_सामयिक
■ एक अटल सच……!!
◆ और क्या बोलें….? बताओ आप!!
【प्रणय प्रभात】
बाग़-बाग़ भटकते आवारा भँवरे का काम एक कली का रस चूस कर दूसरी पर मंडराना है। उनसे ब्याह रचाना और रिश्ता निभाना नहीं। यह नैसर्गिक सच्चाई मूर्ख कलियों को समझ न आए तो पेड़-पौधे, परिंदे या माली क्या करें…? झूमो दिशा बदलती हवा के साथ अपनी मस्ती में और मरो अकाल मौत। दुनिया कब तक, कहाँ तक और क्यों मनाएगी आए दिन मातम…? आज तो चर्चा भी हो रही है एक के बाद एक भेड़-चाल चलने वाली बालाओं की। जिन्हें इश्क़ के नाम पर आशनाई की बला निगल गई। कल ये भी बंद हो जाएगी शायद। ठीक वैसे ही, जैसे घर से भागने वाले मामलों की नहीं होती अब।
अब जबकि हम इस तरह की वीभत्स और भयावह घटनाओं से भरपूर साल को पीछे छोड़ कर एक नए साल में प्रवेश करने जा रहे हैं, आवश्यक है कि श्रद्धाओं व अंकिताओं के हश्र पर विचार हो। आपके हमारे नहीं, बल्कि उनके द्वारा जो इस राह पर अग्रसर हैं। विजातीय विवाह को लेकर विवाद खड़ा करना न हमारा उद्देश्य है, न अधिकार। हम बस इतना सा आगाह कराना चाहते हैं कि चाहतों के पीछे की मंशा को लेकर सतर्कता बरती जाए। इस अंधी डगर पर चलने वालों को सच समझ न आए तो कोई कुछ नहीं कर सकता, आज के दौर में। सिवाय इतना कहने के कि- “योर लाइफ़, योर रूल्स। एज़ यू लाइक, एज़ यू विश।।” या मेरे अंदाज़ में कुछ यूं-
“भँवरे जाएं भाड़ में, बने घूमते बॉस।
तेल लगाएं तितलियां, माली का क्या लॉस??”
वैसे भी जनाब जिगर मुरादाबादी फ़रमा गए हैं कि-
“इक रात का रोना हो तो, रो कर सबर आए।
हर रात के रोने को, कहां से जिगर आए।।”
मतलब बस इतना सा है कि अंधे के गड्ढे में गिरने का दर्द महसूस किया जा सकता है। आंखों वाले के कुएं में कूदने पर काहे की हमदर्दी…??
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●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)