दर्द से खुद को बेखबर करते ।
दर्द से खुद को बेखबर करते ।
ज़िन्दगी ख़्वाब में बसर करते ।।
तुमको मिलती न फिर कोई मंज़िल ।
इश्क़ में तुम अगर सफ़र करते ।।
ज़िक्र होता, कहीं बिछड़ने का ।
अपने दामन को अश्क़ – तर करते ।।
तर्क रिश्ता लगा मुनासिब सा ।
कितना खुद पे भी हम ज़बर करते ।।
दर्द से खुद को बेखबर करते ।
ज़िन्दगी ख़्वाब में बसर करते ।।
Dr fauzia Naseem shad