*यह कुंभ-ज्योति है ईश्वरीय, यह जग-जन-मंगलकारी है (राधेश्यामी

यह कुंभ-ज्योति है ईश्वरीय, यह जग-जन-मंगलकारी है (राधेश्यामी छंद)
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1)
यह सत्य सनातन की गाथा, यह कुंभ बड़ा अलबेला है।
जो जग ने कभी नहीं देखा, वह महाकुंभ का मेला है।।
2)
अमृत बरसा था नभ से जब, नगरी प्रयाग की अमर हुई।
संगम में जो भी नहा लिया, काया उसकी ही अजर हुई ।।
3)
ग्रह-नक्षत्रों के महायोग, सब समय-समय पर आते हैं।
श्रद्धा से कुंभ नहाते जो, वह महापुण्य फल पाते हैं।।
4)
जिसको भी तिथि की खबर मिली, बस-ट्रेन पकड़ कर चला गया।
जो सच्चरित्र था साधु पुरुष, मन से अति पावन भला गया।।
5)
जो बुरा गया है उसके भी, सब पाप कुंभ ने धोए हैं।
है पश्चाताप बड़ा जग में, वे धन्य हृदय से रोए हैं।।
6)
जो बुरी आदतें लाए थे, वह सब संगम में छोड़ गए।
जीवन की धारा का मुख यों, सद्वृत्ति ओर वे मोड़ गए।।
7)
निर्मल वे गए हृदय लेकर, यह महाकुंभ की छाया थी।
अब सभी विकारों से विहीन, उनकी पवित्रतम काया थी।।
8)
जो भले-बुरे सब गए कुंभ, वह अच्छे ही होकर आए ।
छल कपट द्वेष के अंश नहीं, जग ने अब थे उनमें पाए।।
9)
वह सहयोगी-सद्भाव लिए, सब का हित-चिंतन करते हैं।
अब है विनम्रता भरी हुई, कुछ दंभ नहीं वे भरते हैं।।
10)
सब में घुल-मिलकर बस जाना, अद्भुत स्वभाव यह पाया है।
खुद को समुद्र की बूॅंद समझ, अब निरभिमान को पाया है।।
11)
वह समझ गए जग में कोई, किंचित भी नहीं अकेला है।
यह भीड़ भरी है भक्तों से, यह जग भक्तों का मेला है।।
12)
जो लौटे वह यह महाकुंभ, प्रतिदिन ही अनुभव करते हैं।
जीवन का सत्य समझ आया, हर श्वास-श्वास में भरते हैं।।
13)
जो कुंभ गए वह भाग्यवान, भक्तों के दर्शन कर पाए।
जो एक ज्योति सब ही में है, उसको हृदयों में भर पाए।।
14)
यह कुंभ-ज्योति है ईश्वरीय, यह जग-जन-मंगलकारी है।
उससे यह सृष्टि कुटुंब बनी, यह ज्योति कुंभ की न्यारी है।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451