गद्दार पल रहे
कुछ सोच समझ गद्दार पल रहे,
कुछ बैठे-बैठे चाल चल रहे हो ।
कुछ देश विरोधी पहचान बन रहे,
कुछ यूं ही तो अनजान बन रहे ।।
कुछ जमातियो की ठाल बन रहे,
कुछ गद्दारी की मिसाल बन रहे ।
कुछ साथ नहीं पर साथ बन रहे,
कुछ दिल से इनके खास बन रहे ।।
कुछ दर्द नहीं हमदर्द बन रहे,
प्रशासन का सरदर्द बन रहे ।
कुछ राज नही हमराज बन रहे,
कौम के वो सरताज बन रहे ।।
कुछ कहने को विरोध कर रहे,
पर अंदर अंदर साथ चल रहे ।
देश की जनता पहचानो अब तो,
आंख मूंद क्यों साथ चल रहे ।।
गद्दारों के प्राण बन रहे,
उनके लिए तुम जान बन रहे ।
विरोध करो तुम विरोध करो,
हर स्तर पर विरोध करो ।।
इनको प्रेम नहीं देश से,
तुम क्यों उनसे प्रेम कर रहे ।
समय नही है मार धाड़ का,
केवल इनका विरोध करो ।।
जो भी इनके साथ खड़े है,
मत उनसे तुम कुछ भी लो ।
जो भी इनके साथ खड़ा हो,
मत उस पर विश्वास करो ।।
ललकार भारद्वाज