Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Dec 2024 · 5 min read

*01 दिसम्बर*

01 दिसम्बर
#एड्स_दिवस_पर_विशेष:-
■ गहराता जा रहा हैै बे-आवाज मौत की दस्तक का अंदेशा
● पड़ोसी प्रांत से सौगात में मिलता रहा है संक्रमण
● कागजों में सिमटे हुए हैं तमाम जागृति-अभियान
● बज़ट निपटाने की मंशा तक सिमटे आयोजन
● रैली, नारे, भाषण से नहीं सख़्ती से संभव है रोक
[प्रणय प्रभात]
01 दिसम्बर को समूची दुनिया के साथ-साथ भारत और उसका हृदय-स्थल मध्यप्रदेश बिना आवाज़ दबे पांव आने वाली जिस भयावह मौत की चर्चाओं में वैश्विक स्तर पर शामिल होने जा रहा है, उससे राजस्थान की सीमाओं से तीन तरफा घिरे प्रदेश का सीमावर्ती श्योपुर जिला गतिविधियों के लिहाज से अनभिज्ञ भले ही हो परिणामों और दुष्परिणामों के नजरिये से अछूता कतई नहीं है। एच.आई.व्ही. संक्रमण के कारण मानवीय शरीर में अस्तित्व पाने तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को लीलते हुए मानव-जीवन को मौत की अंधी-गहरी खाई में धकेल देने वाले जिस भयावह रोग की चर्चा आज समूचे विश्व में एड्स के रूप में की जानी हैै, उसकी चर्चाऐं श्योपुर जिले में आज भी भले ही लोक-मर्यादा और गोपनीयता के लिहाज से दबी जुबान से की जाती हों किन्तु सच्चाई यह है कि इस रोग की चपेट में आए प्रदेश के सैंकड़ों लोगों में किसी स्तर तक भागीदारी श्योपुर जिले की भी हो सकती है। यह बात और है कि बीते हुए डेढ़ से दो दशक के दौरान जहां गिने-चुने रोगियों को अपने शरीर में एच.आई.व्ही. संक्रमण की मौजूदगी का पता किसी रोग के उपजने व निदान न होने के बीच सम्पन्न कराई गई जांच के बाद गोपनीय रूप से चल सका है वहीं ऐसे लोगों की संख्या कई गुना अधिक हो सकती हैै जिन्हें अभी तक अपनी ओर दबे पांव बढ़ती मौत की भयावहता का अंदाजा तक नहीं है। इसका बड़ा कारण हैै इस रोग के फैलाव की विकरालता को लेकर प्रचार-प्रसार की कमी और जनजागृति का वह अभाव जो अन्य मामलों में भी जिले को पिछड़ा और अभावग्रस्त बनाता रहा हैै। ऐसे में इस रोग से पीडि़त गोपनीय रोगियों का वजूद रोगियों की उस वास्तविक तादाद पर पर्दा डालने के प्रयासों से अधिक कुछ नहीं है जो चप्पे-चप्पे पर पाए जा सकते हैैं। ऐसे में सवाल बस इतना सा ही है कि शेर का रूप धारण कर चुकी बिल्लियों के गले में घण्टी बांधे तो आखिर कौन?
★ गंदा धंधा अब आम आदमी की पहुंच में…..
आधुनिकता और भोगवाद की अप-संस्कृति की चपेट में तेजी से आते हुए जीवन की बिंदास और बेपरवाह शैली की ओर आकृष्टï श्योपुर जैसे विकासशील जिले के जनजीवन में एड्स जैसे महाप्रकोप का समावेश मूलत: वनांचल और ग्राम्यांचल में आम तौर पर प्रचलित रहते हुए नगरीय क्षेत्र में शौक बन चुकी उन उच्छृंखलताओं की देन भी समझा जा सकता है जो सामाजिक व नैतिक वर्जनाओं के आए दिन किसी न किसी मोड़ पर चोरी-छिपे टूटने का परिणाम है। वहीं पड़ौसी राज्य राजस्थान की सरहदों के आसपास सटे कुछ कुख्यात गांवों में खुले तौर पर सजने वाली गर्म गोश्त की मण्डियों को भी इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है जहां जिले के वाशिन्दे कभी गाहे-बगाहे नजर आते थे अब बेनागा देखे जा सकते हैैं। ऐसे में यदि कुछ संभव है तो वह है इस रोग के तीव्रगामी संक्रमण का अनवरत फैलाव जो जिले के लिए पड़ौसी प्रांत की बिन मांगी सौगात भी साबित हो रहा है तथा जिला स्तर पर भी फल-फूल चुका है। उल्लेखनीय है कि श्योपुर नगरी के नवविकसित इलाकों और विरल आबादियों में देहव्यापार की चर्चाऐं बीते हुए कुछ सालों में तेज गति से परवान चढ़ी हैं जिनके प्रति हर स्तर पर उदासीनता बरती जा रही है, जिसे खतरे की बात कहा जा सकता है।
★ संगठित कारोबार बन रही है जिस्म-फरोशी….
विश्वस्त सूत्रों की मानें तो श्योपुर जिला मुख्यालय पर संगठित रूप से जिस्म-फरोशी का खेल विगत कुछ वर्षों से धड़ल्ले से खेला जा रहा है जिसका संचालन आण्टी-छाप बाहरी महिलाओं के साथ-साथ निचले तबके की कुछ ऐसी महिलाओं और युवतियों के हाथ है, जिन्होने इस पेशे को गन्दा है पर धंधा है की तर्ज पर आजीविका के रूप में अपना लिया हैै। ऐसा नहीं है कि इसकी खबर प्रशासन, पुलिस तंत्र या फिर एड्स के खिलाफ जनजागृति के नाम पर लाखों का बजट कागज पर फंूक डालने वाले स्वास्थ्य महकमे को नहीं है, किन्तु विडम्बना की बात यह है कि बहती गंगा में हाथ धोने की नीति यहां भी लोकजीवन से खिलवाड़ को खुली छूट देने वाली साबित हो रही है। स्वास्थ्य विभाग साल में एक बार इस दिवस-विशेष पर किसी छोटे-मोटे आयोजन के रूप में अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर डालता है और जिला तथा पुलिस प्रशासन सामाजिक और नैतिक अपराध से वास्ता रखने वाले इस बवाल से सुरक्षित दूरी बनाए रखने का रास्ता अपनाए हुए है नतीजतन तिल के आकार से शुरू हुआ समस्या और अंदेशे का स्तर अब ताड़ बनने की दिशा में अग्रसर है।
★ गोपनीयता के नाम पर संक्रमण की छूट………
इसे दुर्भाग्यपूर्ण नहीं कहा जाए तब भी विडम्बनापूर्ण तो माना ही जा सकता है कि जो बीमारी संक्रामक वायरस के रूप में एक परिवार के साथ-साथ समूचे समाज तथा एक व्यक्ति के साथ-साथ उसकी आने वाली नस्लों तक के लिए अभिशाप साबित होती जा रही है, उसके दुष्परिणामों को भोगने वालों की पहचान गोपनीय बनाए रखने के नाम पर वास्तविक आंकड़ों को दबाकर रखा जाता रहा है। संभवत: यही वजह है कि जहां इस रोग से पीडि़त लोग औरों में वायरस को पहुंचाने का कारनामा जारी रखे हुए हैं वहीं दूसरी ओर इस रोग की भयावहता व प्रवाहशीलता को लेकर जन-जागरण संभव नहीं हो पाया है। इसके लिए शासन या महकमा जिम्मेदार है या फिर विधान, विचार का विषय हो सकता है तथापि आवश्यकता इस बात की है कि लोक-लाज की पुरानी बीमारी के कारण अपने अस्तित्व को सुरसा की तरह फैलाती इस महामारी के संवाहकों की संख्या को नियमित रूप से सार्वजनिक करते हुए संवाहकों की पहचान हेतु प्रभावी अभियान चलाया जाए।
★ 18 साल में 09 भी नहीं हुए चिह्नित….
श्योपुर जिले में एच.आई.व्ही. वायरस से पीडि़त रोगियों की संख्या और उसमें बढ़ोत्तरी की आशंकाओं के खिलाफ छेड़ी जाने वाली लड़ाई को लेकर जब जानकारियां जुटाने का प्रयास किया गया तब पता चला कि अनापेक्षित विलम्ब के बाद जिले में वर्ष 2005 से आरम्भ हुई एड्स नियन्त्रण इकाई द्वारा जुलाई-2006 से परीक्षण आरंभ करने के बाद शुरूआती पांच सालों में करीब 2500 रोगियों का परीक्षण वालिण्ट्री के आधार पर कराया गया था, जिससे महज 04 रोगियों के वायरस-प्रभावित होने का सच सामने आया था लेकिन इसके बाद मामला ठण्डा पड़ गया जो आज तक भी कागजों में बेशक गर्म हो लेकिन मैदानी धरातल पर ठंडा ही पड़ा हुआ है। चिकित्सकों का भी मानना है यह संख्या वास्तविक तौर पर कई गुना अधिक हो सकती है तथापि इस मकसद से जन-जागरूकता लाने की मुहीम जिले भर में जारी रखे जाने की आवश्यकता है, जिसे लेकर कोई भी किसी भी स्तर पर गंभीर नहीं है। जबकि अब उक्त मुहीम की दरकार पहले से कई गुना अधिक है। अब देखना यह है कि लगातार बढ़ती कनेक्टिविटी के बीच और तेज़ी से संक्रमण विस्तार की आशंका पर कैसे व किस हद तक लगाम लग पाती है।
©® सम्पादक
-न्यूज़&व्यूज़-
श्योपुर (मप्र)

2 Likes · 33 Views

You may also like these posts

इस कदर भीगा हुआ हूँ
इस कदर भीगा हुआ हूँ
Dr. Rajeev Jain
“यह बात सत्य हैं”
“यह बात सत्य हैं”
Dr. Vaishali Verma
सेल्फी या सेल्फिश
सेल्फी या सेल्फिश
Dr. Pradeep Kumar Sharma
हँसती है कभी , रुलाती भी है दुनिया।
हँसती है कभी , रुलाती भी है दुनिया।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
चेहरे पर तेरे मुस्कान गुलाबी सर्द सी है।
चेहरे पर तेरे मुस्कान गुलाबी सर्द सी है।
Rj Anand Prajapati
संक्रांति
संक्रांति
sushil sharma
एक लेख...…..बेटी के साथ
एक लेख...…..बेटी के साथ
Neeraj Agarwal
श्मशान
श्मशान
श्रीहर्ष आचार्य
हिन्दी
हिन्दी
आशा शैली
दिल में तेरी तस्वीर को सजा रखा है -
दिल में तेरी तस्वीर को सजा रखा है -
bharat gehlot
यदि आप स्वयं के हिसाब से परिस्थिती चाहते हैं फिर आपको सही गल
यदि आप स्वयं के हिसाब से परिस्थिती चाहते हैं फिर आपको सही गल
Ravikesh Jha
आनंद
आनंद
Rambali Mishra
ता थैया थैया थैया थैया,
ता थैया थैया थैया थैया,
Satish Srijan
लिख रहा हूं।
लिख रहा हूं।
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
मौहब्बत की नदियां बहा कर रहेंगे ।
मौहब्बत की नदियां बहा कर रहेंगे ।
Phool gufran
मैं अपना यौवन देता हूँ !
मैं अपना यौवन देता हूँ !
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
मुझको बहुत पसंद है यह
मुझको बहुत पसंद है यह
gurudeenverma198
रमेशराज के त्योहार एवं अवसरविशेष के बालगीत
रमेशराज के त्योहार एवं अवसरविशेष के बालगीत
कवि रमेशराज
#विक्रम चुप क्यों है ?
#विक्रम चुप क्यों है ?
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
मार्ग ढूंढने निकले थे रास्ते में एक मोड़ आया
मार्ग ढूंढने निकले थे रास्ते में एक मोड़ आया
Sonam Puneet Dubey
न मुझको दग़ा देना
न मुझको दग़ा देना
Monika Arora
"My friend was with me, my inseparable companion,
Chaahat
अधर्म पर धर्म की विजय: आज के संदर्भ में एक विचारशील दृष्टिकोण
अधर्म पर धर्म की विजय: आज के संदर्भ में एक विचारशील दृष्टिकोण
Dr Nisha Agrawal
2876.*पूर्णिका*
2876.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बिखर गए जो प्रेम के मोती,
बिखर गए जो प्रेम के मोती,
rubichetanshukla 781
!! चहक़ सको तो !!
!! चहक़ सको तो !!
Chunnu Lal Gupta
"समझो जरा"
Dr. Kishan tandon kranti
यथार्थ
यथार्थ
इंजी. संजय श्रीवास्तव
मुसीबतों को भी खुद पर नाज था,
मुसीबतों को भी खुद पर नाज था,
manjula chauhan
*सावन में अब की बार
*सावन में अब की बार
Poonam Matia
Loading...