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9 Nov 2024 · 1 min read

दिल है पाषाण तो आँखों को रुलाएँ कैसे

दिल है पाषाण तो आँखों को रुलाएँ कैसे
अपनी तक़दीर के लिक्खे को मिटाएँ कैसे

जब धड़कते हैं वो साँसों में हमारी हरदम
ख़ुद को यादों से भी आज़ाद कराएँ कैसे

जब लिखा है ही नहीं साथ हमारा रहना
उनको हाथों की लकीरों में बनाएँ कैसे

आता पढ़ना है उन्हें आँखें हमारी देखो
दर्द हम उनसे छुपाएँ तो छिपाएँ कैसे

बंद आँखों में छिपा रक्खा है उनको हमने
वो किसी को भी नज़र आएँ तो आएँ कैसे

ये ज़माना ही बना देगा फ़साना इसका
नाम हम उनका ज़ुबां पर बता लाएँ कैसे

जो छिड़कता है नमक ज़ख्मों पे हमारा बनकर
उससे याराना निभाएँ तो निभाएँ कैसे

जब ये कर बैठा है सीधी ही बगावत हमसे
‘अर्चना’ दिल को मनाएँ तो मनाएँ कैसे

डॉ अर्चना गुप्ता
01.11.2024

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