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19 Jun 2022 · 1 min read

सोंच

प्यासा था, पानी पियोगे ?
आवाज आई, पलट के देखा
सज्जन सा दिखने वाला व्यक्ति
हां मे सर हिलाया

आओ अंदर आ जाओ
तेज धूप है धरती भी तप रही
अंदर छांव देख
मन मयूर हर्षाया

सोंचा, भला आदमी है
जान न पहचान
पानी पिलाने को
घर के अंदर बुलाया

दस मिनट बीत गये
सामने वो आया न पानी
सोंचा, बेकार आदमी है
पानी के बहाने फुसलाया

कहीं कोई चाल तो नही
ठगी करने का जाल तो नही
अब क्या होगा ?
मन मे डर समाया

इतने मे वो गिलास लेकर
प्रकट हुआ और बोला
सोंचा शिकंजी ही बना दूं
देर हुई माफ करना भाया

सोंचा, बड़ा भला मानुष है
जाने क्या सोंचने लगा था ?
अब भी ऐसे लोग
अपनी बुद्धी पे शर्माया

चखा, मीठा तो था नही
सोंचा बडा ही धूर्त है
पहले ठीक सोंच रहा था
भोला समझ फंसाया

आंखे मिलते ही उसने
जेब से पुड़िया निकाली
डायबिटीज न हो सिर्फ नींबू डाला
जितनी चाहो ले लो शक्कर लाया

इनते भले लोग भी है
कितना ख्याल रक्खा
मन गदगद हो गया
सोंच ने कितना भरमाया ?

स्वरचित
मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
– अश्वनी कुमार जायसवाल

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 213 Views
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