दोहा षष्ठक. . . . जीवन
दोहा षष्ठक. . . . जीवन
छोड़- छाड़ संसार को, जीव गया उस पार ।
चार दिनों का शोक फिर, भूल गया संसार ।।
औरों को देखा मगर, कब समझा इंसान ।
भौतिक सुख सब छूटते, जब होता अवसान ।।
जीते जी संसार में, मिलती है दुत्कार ।
पुष्पों से ढकते कफन ,जब छूटे संसार ।।
किसने देखी है लगी, कभी कफन में जेब ।
फिर भी धन की लालसा, देती उसे फरेब ।।
छोड़- छाड़ संसार को, जीव गया उस पार ।
चार दिनों का शोक फिर, भूल गया संसार ।।
साथी अनगिन साथ थे, जब छूटा संसार ।
मिला खाक में तो हुए, कर्म सभी साकार ।।
सुशील सरना / 6-2-25