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30 Oct 2024 · 1 min read

रुख़ से परदा हटाना मजा आ गया।

रुख़ से परदा हटाना मजा आ गया।
बिजलियाँ यूँ गिराना मजा आ गया।

बात जाने न हमने क्या कह दी मगर,
देखकर मुस्कुराना मजा आ गया।

तोड़कर बंदिशें इस ज़माने की सब,
रोज मिलना मिलाना मजा आ गया।

पल दो पल के लिये रब से मांगा सुकूं,
हाथ तेरा थमाना मजा आ गया।

इश्क में हो गया हूँ मैं पागल तेरे,
कह रहा है जमाना मजा आ गया।

नींद कोसों हुई दूर मुझसे मगर,
मौत का थपथपाना मजा आ गया।

जिन किताबों में दिल को निचोड़ा कभी,
आग उनमें लगाना मजा आ गया।

एक मुद्दत हुई भूख मिटती नहीं,
माँ के हाथों से खाना मजा आ गया।

आसमां ये “परिंदा” न छू ले कहीं,
क़ैद में फड़फड़ाना मजा आ गया।

पंकज शर्मा “परिंदा”🕊

Language: Hindi
141 Views
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