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12 Oct 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . जिंदगी

दोहा पंचक. . . . जिंदगी

रंग बदलती जिन्दगी, मौसम के अनुरूप ।
कभी सुहाती छाँव तो, कभी सताती धूप ।।

क्यों आखिर यह जिंदगी, चाहे जीना ख्वाब ।
हर ख्वाहिश का अंत वो, जाने सिर्फ अजाब ।।

अनजाने से मोड़ हैं, अंतहीन है राह ।
किस गफलत में जिंदगी, दुख से करे निबाह ।।

शूलों से भरपूर है, जीवन की यह राह ।
दुख से मुश्किल हो गया, करना अब निर्वाह ।।

सिन्धु क्षितिज पर जिंदगी, नभ से करे सवाल ।
कब टूटेगा तू बता, सुख – दुख का यह जाल ।

सुशील सरना /11-10-24

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