Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jun 2024 · 3 min read

राम सीता

राम सीता

बनवास में रहते हुए दस वर्ष हो चुके थे , इतने वर्ष घर से दूर रहने के कारण तीनों के मन में थोड़ी उदासी छाने लगी थी , परन्तु इसकी चर्चा कोई नहीं कर रहा था।

एक दिन सीता ने राम से कहा , “ लक्ष्मण आजकल बहुत गुमसुम रहते हैं। ”

“ हाँ , मेरे कारण वह अपनी पत्नी से भी दूर है , परन्तु मैं जानता हूँ जब तक मैं अयोध्या नहीं जाऊंगा , वह भी नहीं जायगा। ”

“ जानती हूँ , परन्तु एक सुझाव है , नदी के उसपार एक विवाह का आयोजन हो रहा है , और हमें इसके लिए निमंत्रण भी आया है , आप यदि कहेंगे तो लक्ष्मण आपका प्रतिनिधत्व करने के लिए अवश्य चला जायगा। ”

राम मुस्करा दिए , “ पिछले दिनों यहां राक्षसों के साथ इतनी मुठभेड़ें हुई हैं कि, लक्ष्मण विशेष रूप से तनाव में रहा है , यह विनोद प्रमोद उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहेगा। ”

जब राम ने लक्ष्मण से इस विषय पर बात की तो लक्ष्मण ने कहा ,” सुझाव तो अच्छा है , पर भैया अमोद प्रमोद की आवश्यकता तो आपको और भाभी को भी है , यह तनाव तो हम सबने भुगता है। ”

लक्ष्मण ने पल भर के लिए उत्तर की प्रतीक्षा की , जब राम मौन रहे तो लक्ष्मण ने फिर से कहा , “ मैं आपकी बात रखता हूँ , आप मेरी बात रखिये , मैं आप दोनों के नौका विहार का प्रबंध करता हूँ। ”

राम मुस्करा दिए, ” विचार बुरा नहीं, नदी किनारे आग की व्यवस्था भी कर देना , पहले तुम्हारी भाभी के लिए मै भोजन पकाऊँगा, फिर चांदनी रात में नौका विहार के लिए ले जाऊंगा। ”

सुनकर लक्ष्मण का मन खिल गया , ” और भैया , यह योजना हम भाभी से गुप्त रखेंगे ,अचानक यह सब देखकर वह कितनी प्रसन्न हो जायेंगी !”

अपने भाई की यह निश्छलता देख राम का मन भर आया, और उर्मिला के बारे मेँ सोचकर वह और भी द्रवित हो उठे ।

सीता सब प्रबंध देखकर सुखद आश्चर्य से भर उठी ,” मुझसा सुखी कोई नहीं। ” सीता ने चाँद को देखते हुए नाव मेँ कहा ।
“ और मुझसा भाग्यवान ।” राम ने कहा ।

“ अच्छा राम, क्या सचमुच कभी मैंने तुम्हारी आत्मा को छुआ है ?”

राम ने सीता की आँखों में देखते हुए कहा, “ वहीं तो छुआ है तुमने ।”

“ कैसे ?”

राम ने चप्पू छोड़कर सीता के दोनों हाथ अपने हाथ में ले लिये , फिर उनका माथा चूमकर कहा , “ जब तुम किसी अस्वस्थ बच्चे के लिये रातभर सो नहीं पाती तो मेरी आत्मा को छूती हो , जब भूखे अतिथि के लिये अपना भोजन छोड़ देती हो तो मेरी आत्मा को छू लेती हो , जब तुम –”

इससे पहले कि राम आगे कुछ कहते, सीता ने उनके ओंठो पर हथेली रख दी , ” बस मैं समझ गई। ”

राम और सीता उस चाँदनी रात में कुछ पल, एक सुखद शांति का अनुभव करते हुए चुपचाप पवन और नदी के बहाव में खोये रहे, फिर राम ने कहा ,

“ कभी-कभी सोचता हूँ, जीवन में तुम्हें कुछ नहीं दे पाया, घर के नाम पर एक छोटी सी कुटिया, दिन भर का श्रम, सदा असुरक्षा में बना रहने की बाध्यता, तुम्हारे मित्र, बंधु बांधव सबको मिले कितना समय हो गया है तुम्हें , “ फिर एक पल रूक कर कहा ,”जिसके लिए मुझे श्रृंगार के साधन जुटाने चाहिए थे, उससे हमेशा लिया ही है।” अंत तक आते आते राम का स्वर द्रवित हो उठा ।

यह सब सुनकर सीता की आँखें नम हो उठी , उन्होंने राम को स्नेह से देखते हुए कहा, “ राम किसी भी स्त्री को ऐसा पति चाहिए होता है, जिसके जीवन मूल्य सुदृढ़ हों , और चिंतन स्पष्ट हो , अपने उद्देश्य में मुझे भागीदार बनाकर, तुमने शेष सब आवश्यकताओं को निरर्थक बना दिया । मन के इस गहरे संतोष को अनुभव करने के बाद कुछ भी तो आवश्यक नहीं रह जाता ।”

राम मुस्करा दिये, पर सीता जानती थी, राम अभी भी पूरी तरह से सहमत नहीं हुए हैं । वह खिल उठी और राम के चप्पू चलाते हाथों को रोककर कहा, “ तुमने मुझे स्वयं को जानने में सहायता की है, इसलिए मेरी ख़ुशी क़िस में है , यह चुनाव भी मेरा है। “

राम भी खिल उठे ,” कभी-कभी सोचता हूं, अंतिम सत्य पा जाने का सुख , क्या तुमसे एक होने के सुख से भिन्न होगा !”

सीता हंस दी , “ आज की रात मैं उस अंतिम सत्य को पाने की भी इच्छा नहीं रखती, मैंने सब पा लिया है ।”

उस रात पूरी सृष्टि उनके इस सुख में खो गई ।

—-शशि महाजन

1 Like · 139 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

सद्विचार
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कविता जीवन का उत्सव है
कविता जीवन का उत्सव है
Anamika Tiwari 'annpurna '
अदान-प्रदान
अदान-प्रदान
Ashwani Kumar Jaiswal
कारगिल विजयदिवस मना रहे हैं
कारगिल विजयदिवस मना रहे हैं
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
तुम...
तुम...
Vivek Pandey
वृक्ष होते पक्षियों के घर
वृक्ष होते पक्षियों के घर
Indu Nandal
*साम्ब षट्पदी---*
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
बॉर्डर पर जवान खड़ा है।
बॉर्डर पर जवान खड़ा है।
Kuldeep mishra (KD)
The Sky Longed For The Earth, So The Clouds Set Themselves Free.
The Sky Longed For The Earth, So The Clouds Set Themselves Free.
Manisha Manjari
दो रुपए की चीज के लेते हैं हम बीस
दो रुपए की चीज के लेते हैं हम बीस
महेश चन्द्र त्रिपाठी
"हल्दी"
Dr. Kishan tandon kranti
नवदुर्गा:प्रकीर्तिता: एकटा दृष्टि।
नवदुर्गा:प्रकीर्तिता: एकटा दृष्टि।
Acharya Rama Nand Mandal
मां जो है तो है जग सारा
मां जो है तो है जग सारा
Jatashankar Prajapati
कुण्डलियाँ छंद
कुण्डलियाँ छंद
पंकज परिंदा
दुख तब नहीं लगता
दुख तब नहीं लगता
Harminder Kaur
कण कण में प्रभु
कण कण में प्रभु
Sudhir srivastava
चार कंधों पर मैं जब, वे जान जा रहा था
चार कंधों पर मैं जब, वे जान जा रहा था
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
शीर्षक -नव वर्ष स्वागत
शीर्षक -नव वर्ष स्वागत
Sushma Singh
रे मन  अब तो मान जा ,
रे मन अब तो मान जा ,
sushil sarna
शिकायत लबों पर कभी तुम न लाना ।
शिकायत लबों पर कभी तुम न लाना ।
Dr fauzia Naseem shad
मुझे ऊंचाइयों पर देखकर हैरान हैं बहुत लोग,
मुझे ऊंचाइयों पर देखकर हैरान हैं बहुत लोग,
Ranjeet kumar patre
कभी कभी जो जुबां नहीं कहती , वो खामोशी कह जाती है । बेवजह दि
कभी कभी जो जुबां नहीं कहती , वो खामोशी कह जाती है । बेवजह दि
DR. RAKESH KUMAR KURRE
सच पागल बोलते हैं
सच पागल बोलते हैं
आशा शैली
कुछ बातों का ना होना अच्छा,
कुछ बातों का ना होना अच्छा,
Ragini Kumari
दुआएं
दुआएं
Santosh Shrivastava
नीति प्रकाश : फारसी के प्रसिद्ध कवि शेख सादी द्वारा लिखित पुस्तक
नीति प्रकाश : फारसी के प्रसिद्ध कवि शेख सादी द्वारा लिखित पुस्तक "करीमा" का बलदेव दास चौबे द्वारा ब्रज भाषा में अनुवाद*
Ravi Prakash
पुरुषो को प्रेम के मायावी जाल में फसाकर , उनकी कमौतेजन्न बढ़
पुरुषो को प्रेम के मायावी जाल में फसाकर , उनकी कमौतेजन्न बढ़
पूर्वार्थ
दिल की फरियाद सुनो
दिल की फरियाद सुनो
Surinder blackpen
ओ रावण की बहना
ओ रावण की बहना
Baldev Chauhan
उज्जैन घटना
उज्जैन घटना
Rahul Singh
Loading...