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31 Aug 2024 · 1 min read

*मतलब की दुनिया*

फिर जीने की आस हुई जब
आकर वो मेरे जनाज़े पर रो गए
जिनके दिल तोड़ने से हम
गम में मजबूरन ज़हर खा गए

अब मुमकिन नहीं था वापिस आना
इस दुख में थोड़े हम भी रो दिए
होश सँभाला तो देखा कि
वो किसी और के साथ चल दिए

है यही ज़िंदगी यारों
कोई किसी के लिए नहीं रुकता यहां
जब तक कोई ज़रूरत न हो
कोई किसी के सामने नहीं झुकता यहां

है सब मतलब का खेल
बस अलग अलग नाम दे रखें है हमने
जिससे कुछ चाहिए हमको
उनसे ही रिश्ते जोड़ रखें है हमने

मतलब निकलते ही मैं कौन तुम कौन
की परिस्थितियां हो जाती है यहां
करता है जो सच्चा प्यार किसी से
वो तो हमेशा सताया जाता है यहां

होंगे सबके अपने अपने अनुभव
लेकिन धोखा तो सभी को मिला होगा यहां
कलियों को नहीं छोड़ते लोग, सोचना मुश्किल है
बिना माली के फूल खिला होगा यहां

फिर भी जी रहें है हम एक ही उम्मीद में
कभी तो हालात सुधरेंगे यहां
लालच और स्वार्थ को हराकर
त्याग और प्यार के रिश्ते बनेंगे यहां।

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