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21 Aug 2024 · 1 min read

क्या तुम कभी?

#विधा:- अतुकांत
#दिनांक:-21/8/2024
#शीर्षक:-क्या तुम कभी?

हाँ, तुम मुझे जानते हो…,
पर अगर प्रश्न करूँ,
कितना जानते हो…?
तुम अनमने से हो जाते हो,
बहुत सोचते हो, पर जवाब क्या है?
कुछ आदतों को बताते हो,
पर स्त्रीत्व को नहीं समझ पाते हो।
एकांत क्या है, यह स्त्री से पूछो।
आदतों और व्यवहार से ऊपर,
स्त्री को जानने की कोशिश करना,
रसोई से लेकर हमबिस्तर तक,
सब जाने-पहचाने हैं,
पर क्या यही स्त्री का सम्पूर्ण स्थान है?
कहाँ घर है और कहाँ बसाया जाना है?
अनादिकाल से तलाशती अपनी पहचान,
पूछती मायके से और पूछती पति परमेश्वर से,
पर जवाब कहाँ है?
कई गुप्त बातें गुप्त तरीके से दफन हो जाती हैं,
प्रेम अच्छाई ही ससुराल का कफन बन जाती है।
स्वयं के दुःख-दस्तावेज पर स्वयं हस्ताक्षर करती,
स्वयं की लड़ाई खुद ही कुरुक्षेत्र में लड़ती।
सपनों का पीछा करती और सपनों में तड़पती,
मन के गाँव को कभी देख पाए हो?
स्त्री के रिश्तों के व्याकरण को समझ पाए हो?
स्त्री दृष्टिकोण का अनुवादक बन पाए हो?
क्या तुम कभी,
किसी स्त्री को जान पाए हो???

(स्वरचित,मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित है)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई

Language: Hindi
189 Views
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