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21 Aug 2024 · 4 min read

फायदा

सुबह लगभग आठ बजे का समय था। ट्रैन की रफ़्तार धीरे-धीरे काम हो रही थी। शायद कोई स्टेशन आने वाला हो, यह सोच कर मैंने कुछ खाने की इच्छा से नीचे उतरने की मंशा बनाई। पैर में स्लीपर डाल कर दरवाजे की ओर आहिस्ता चल दिया। अचानक दरवाजे के पहले एक दस वर्षीय बालक एक मैले से झोले में कुछ खिलौने लिए टहल रहा था। बैठे हुए सभी यात्रियौं से खिलौने खरीदने का अनुनय करता आगे बढ़ रहा था। सभी उसकी बातों को अनसुनी कर उसे आगे जाने की हिदायत देते। उसी क्रम में उसने मुझसे भी निवेदन किया। पता नहीं क्यों अचानक से इस निवेदन ने मुझे द्रवित कर दिया, मैंने उसे अपनी बर्थ की ओर इशारा करते हुए बैठने को कहा, बोला मैं आ रहा तुम वही प्रतीक्षा करो। तब तक ट्रैन रुक चुकी थी , मैं तेजी से बाहर निकला।
बाहर आने पर निहालगढ़ स्टेशन दिखा। वहां का चिरपरिचित स्वादिष्ट समोसा और एक बोतल पानी लेकर तुरंत मैं डिब्बे में वापस आ गया। वह बालक अभी तक मेरे बर्थ के पास जमीन पर ही बैठा था। मैंने एक हलके गुस्से का इजहार करते हुए; उससे कहा -” अरे उठो ऊपर बैठो “- कहते हुए उसे भी दो समोसे दिये। पहले तो वह लेने में हिचकिचाया फिर मेरे जोर देने पर लेकर पुनः जमीन पर बैठ गया। मैंने कहा कि तुम मानोगे नहीं , चलो अच्छा वही बैठ कर खाओ। वह खा रहा था , बीच बीच में अपने खिलौने भी दिखा रहा था , उसकी तारीफ भी कर रहा था। मैं भी मजे लेकर उसकी बात सुन रहा था, बीच बीच में उसे खाने को याद भी दिला देता।
समोसा ख़त्म कर हम दोनों ने पानी पिया। तभी डिब्बे में चाय वाला भी आ गया। मैंने दो चाय उसको बोला। लडके ने पुनः अनमने से मना किया कि नहीं वह चाय नहीं पिएगा। वस्तुतः उसके अंदर उसका सामान न बिकने की बेचैनी दिख रही थी, उसकी चाय समोसे में कोई रूचि नहीं दीख रही थी। जिसे मै कुछ सोचते हुए समझ रहा था। मैंने हँसते हुए उसे चाय थमाया और बोलै पहले चाय पियो फिर देखते है। एक हल्की से उम्मीद जगने पर अनन्तः उसने चाय लिया और सुड़क सुड़क कर चाय पीते उसने कहा बाबूजी कुछ खिलौने ले लो , सुबह से आज बोहनी नहीं हुई ह। आज घर भी जल्दी जाना है।
मैंने एक हल्की मुस्कान के साथ पूछा – ” क्यों ? क्या बात है, क्यों जल्दी घर जाना है ”
उसने सकुचाते हुए कहा -” आज मेरा जन्मदिन है – अम्मा ने कहा था कि बबुआ जल्दी आना , आज खीर बनायेगे तुम्हारे लिए साथ ही दूध ले आने को भी कहा है , बाबूजी चावल घर पर है। पर आज कुछ बिका ही नहीं कैसे क्या होगा कुछ समझ नहीं आ रहा।”
अच्छा तो आज साहब का जन्मदिन है – चलो निकालो सब खिलौने – कितने का दोगे मैंने चाय समाप्त करते हुए उससे कहा।
उसने कुल खिलौने की गिनती की बोला ” कुल दस है बाबूजी। दूसरे को तीस के रेट से बेचते है , आप भले आदमी है,पच्चीस लगा कर दे दीजिये।
” नहीं यार बीस का लगाओ तो सब ले लेंगे ” मैंने थोड़ा गंभीर होकर कहा।
” तब बाबूजी दूध का पैसा नहीं आ पायेगा ” थोड़ा निराश होते हुए उसने कहा।
मैं मुस्कुराया फिर जेब से तीन सौ निकाले और बोला चलो तब तीस का लगा लो। लाओ सब खिलौने मुझे दे दो।
” अरे नहीं बाबूजी लगता है आप नाराज हो गये, चलिए बीस का ही लगा लीजिये ” लडके ने भय व निवेदन दोनों के मिश्रित लहजे में कहा।
” नहीं अब मै तीस से ज्यादा नहीं दूंगा ”
” बाबूजी तीस बीस से ज्यादा होता है ” उसने मुझे सिखाते हुए कहा।
” जानता हूँ ”
” फिर क्यों ऐसा कह रहे ?”
” बस मेरा मन किया ” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
उसने मेरे भाव को समझ लिया था , मुस्कुराते हुए कृज्ञता से पैसा लिया और सब खिलौने मुझे देते हुए पूछा –
” बाबूजी एक बात पूछूं, आप नाराज तो नहीं होंगे न ”
” नाराजगी की बात होगी तो क्यों नहीं नाराज होऊंगा ” मुस्कुराते हुए कहा – ” अच्छा पूछो”
” इतने खिलौने का आप क्या करेंगे, आपके पास तो कोई बच्चा भी नहीं दीख रहा ”
” तुम भी तो मेरे बच्चे के सामान हो, ऐसे ही रास्ते में बहुत बच्चे मिलेंगे, सबको बांटता जाऊंगा ”
” इससे आपको क्या फायदा होगा ”
” बेटे सब काम केवल फायदे के लिए नहीं किये जाते, वैसे भी इसमें मेरा एक फायदा होगा, मुझे खूब मजा आएगा, जब बच्चे खिलौने पाकर
उछल कर खुश होकर नाचेंगे तब ”
” बाबूजी ऐसा तो साल में एक बार भगवान आता है, सबको खिलौने बांटता है – मेरी अम्मा ऐसा कहती है , तो कही आप,,,,,,,,,,,”
” अच्छा अब जल्दी से दूध लेकर घर जाओ, तुम्हारी अम्मा तुम्हारा इंतजार कर रही होगी” मैंने उसे बीच में टोकते हुए कहा ” और हाँ यह दो सौ
रुपये और रख लो , एक अपने लिए टी शर्ट ले लेना मेरी तरफ से ”
” नहीं बाबूजी अम्मा कहती है मेहनत करके कमाना, खाना और पहनना चाहिए , इसलिए अब नहीं ” फिर आप तो ,,,,,,,,,,,मैंने अपने दोनों ओंठों पर तर्जनी ऊँगली बीच में रखते हुए उसे चुप रहने को बोला और जाने का इशारा किया। वह बालक एक जी भर कर देखने वाली निगाह से मेरी ओर बार बार पलट कर देखते हुए बहार जाने लगा, मै सुदूर बजते हुए एक गाने ” उदासी भरे दिन कभी तो ढलेगे ” को सुनाने में तल्लीन हो गया।

निर्मेष

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