ये बेपरवाही जंचती है मुझ पर,
ये लम्हा लम्हा तेरा इंतज़ार सताता है ।
सुल्तानगंज की अछि ? जाह्न्नु गिरी व जहांगीरा?
चमकते चेहरों की मुस्कान में….,
जो धनी हैं वे धनी बनते जा रहे हैं,
गम के आगे ही खुशी है ये खुशी कहने लगी।
"बेखबर हम और नादान तुम " अध्याय -3 "मन और मस्तिष्क का अंतरद्वंद"
*हिंदी साहित्य में रामपुर के साहित्यकारों का योगदान*
एक शिक्षक होना कहाँ आसान है....
सच तो जीवन में शेड का महत्व हैं।
संस्कारों और वीरों की धरा...!!!!