प्रणय पुलक
///प्रणय पुलक///
जल हो जाता सुधा सदृश,
जब पाता वह यह स्पर्श।
अर्पित सारी विश्वनिधि जहां,
कैसा जीवन मरण संघर्ष।।
बोल तुम्हारे परा संगीत,
तेरी वाणी में अमृत गीत।
जग सारा पूर्णकाम यहां,
प्रचंड ज्वालअग्नि विनीत।।
अतीव शक्ति का नव उद्भव,
वरद सारा यह सांगीतिक रव।
रेणु सारे अथाह समुद्रसम,
रंजीत है सारी निधि अभिनव।।
सुरभि कुट्टीम श्रृंगार प्रगल्भ ,
नवगति नवमति का उत्सव।
अखिल सृष्टि की शरण निकेता,
मधुता रंजित है तेरा कलरव।।
कितने अंगारे रहे बरसते,
कितना बरसा यहां पानी।
कितने जीवन एकभाव हुए,
किसकी व्यथित हुई वाणी।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)