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4 Aug 2024 · 1 min read

लड़ाई बड़ी है!

आज़ादी किसके लिए, किसकी छिनी जमीन।
सब कुछ उसका लुट गया, होता नहीं यकीन।।

राजा अब नेता हुआ, बेच बेच कर खेत।
लोक लाज के वास्ते, अब बेंच रहे हैं रेत।।

नब्बे तक ढलने लगे, कल के राजा महराज।
लोकतंत्र ने कर दिया, उनका खतम समाज।।

निगल गई नेतागिरी, इज्ज़त बात जमीन।
नीचे नहीं जमीन है, वो करता नहीं यकीन।।

कुछ गुटखे ने खा लिया, तो कुछ पी गई शराब।
कुछ चिलम का धुवां ले उड़ा, हालत हुई खराब।।

ब्राह्मण क्षत्रिय थे कभी, सब बल बुद्धि निधान।
लोकतंत्र ने कर दिया, इन सबका ही संधान।।

संख्या बल के खेल में, ये सब हो गए फेल।
सत्तर सालों से हो रहा, इनका रेलम पेल।।

कलम और तलवार की ताकत हो गई क्षीर्ण।
लोकतंत्र का हर बहस, इनको करे विदिर्ण।।

राजा अगुआ पालक थे तुम अपने समाज के।
शोषक घोषित तुम्हें कर दिया अपने समाज के।।

लड़ न सके तुम लोकतंत्र के इस छल बल से।
काट सके ना जाल, बुद्धि न ही भुजबल से।।

समझ सके न मुगलों का इस्लाम न अंग्रेजो को।
खंड खंड कर तुम्हें कर गए न समझे रंगरेजो को।।

थे चरित्र के पोषक तुम, लोकतंत्र तो संख्या बल है।
पागल हिजड़े राजा हो, यही तो लोकतंत्र का कल है।।

कर सशक्त परिवारों को तुम, अपना समाज शसक्त करो।
बलिदानी समभाव बनाकर, तुम पुनः समर्पित रक्त करो।।

सारा समाज अपना समाज है, इसका कोई तुल्य नहीं है।
ये समाज हिंदू समाज है, सेवादारी का कोई मूल्य नहीं है।।

जय हिन्द

Language: Hindi
1 Like · 134 Views
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