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5 May 2024 · 1 min read

4 खुद को काँच कहने लगा …

4 खुद को काँच कहने लगा …

खुद ही टकराता खुद ही चोट खाता ,
दिल हर दिन नए किस्से सहने लगा

वरदान मिला अंधेरों को या है मजबूरी ,
क्या करता उजला चाँद अंधेरे सहने लगा

चोट खाए मन को है तन्हाइयों की ज़िद ,
अब उसका भी दर्द आंखों से बहने लगा

उसने हीरे को इस कदर काँच कहा कि ,
हीरा भी खुद को काँच ही कहने लगा

जो कभी किसी की आंखों का नूर था ,
वो अब जुगनुओं सा मजबूर रहने लगा

क्षमा ऊर्मिला

Language: Hindi
95 Views
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