नज़्म _ तन्हा कश्ती , तन्हा ये समन्दर है ,
So who's your competition ?
गुलाम
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
सज्जन पुरुष दूसरों से सीखकर
कोई हमें छोड़ कर चला गया, आज भी हमें उन पर बेइंतेहा भरोसा है
सदा मिलन की आस में, तड़प रही है श्वास।
बहशीपन की हद पार कर गया आदमी ,
*जीवन में जो सोचा सब कुछ, कब पूरा होता है (हिंदी गजल)*
रमेशराज की बच्चा विषयक मुक्तछंद कविताएँ
संस्कारों का बोझ सदा क्यूं औरत ही संभालेगी,
सत्यव्रती धर्मज्ञ त्रसित हैं, कुचली जाती उनकी छाती।
It’s about those simple moments shared in silence, where you
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
ठोकर बहुत मिली जिंदगी में हमें