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12 Mar 2025 · 1 min read

संस्कारों का बोझ सदा क्यूं औरत ही संभालेगी,

संस्कारों का बोझ सदा क्यूं औरत ही संभालेगी,
त्याग प्रेम की मूरत में कब तक खुद को ढालेगी
“ज्वाला”कहती पड़े ज़रूरत आगे कदम बढ़ा लो
लाँघ दो मर्यादा वरना यह तुमको रौंद ही डालेगी,,

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