Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 May 2017 · 4 min read

रमेशराज की बच्चा विषयक मुक्तछंद कविताएँ

-मुक्तछंद-
।। जूता और बच्चा ।।
जूते को लगातार चमकाता है
उसे आईना बनाता है
रंग और क्रीम के साथ
जूते पर पालिश
करता हुआ बच्चा।

बच्चा गुनगुनाता है
मीठी आवाज में फिल्मी गीत
जूते पर पड़ते हुए
टांकों के साथ
बच्चा करता है
चिलचिलाती धूप में
अपने अकेलेपन से बात।
जूते में छोटी-छोटी
टिकलियां टाकते हुए
सड़क की गर्म धूल फांकते हुए
बच्चा सर से एड़ी तक
पसीने से तर हो जाता है
जूते में खो जाता है
जूता बनाते हुए।

थके हुए हाथों की
उगलियां चटकाते हुए
बच्चा भविष्य की
कल्पनाएं बुनता है
अपने भीतर वसंत चुनता है
जूते पर आयी
चमक और पूर्णता के साथ।

ऐसे में हो जाते हैं
बौराए आम-से
बच्चे के जज्बात।
-रमेशराज

———————————–
-मुक्तछंद-
।। बच्चा, मालिक और पेट ।।
हथौड़ा चलता हुआ बच्चा
हांफ-हांफ जाता है
हर हथोड़े की चोट के साथ।

बच्चा अपने को पसीने से
तर-ब-तर पाता है
हर हथौड़े की चोट के साथ,
लोहा पीटते हुए
बच्चा होता है चूर-चूर
थकान से भरपूर।

बच्चे की हथेलियां
छालों से भर जाती हैं
उन पर ठेकें उग आती हैं |

बच्चा धोकनी चलाते हुए।
लोहा तपाते हुए
अपनी जिंदगी भी फूंकता है
लोहे की तरह दिन-रात
धोंकनी के साथ।

बच्चे को
सुखद अनुभूतियां देता है
नयी-नयी शक्ल में
बदलता हुआ सुर्ख लोहा
पिटने के बाद ठंडा होते हुए।

बच्चा बार-बार चिहक उठता है
पानी में गिरते ही
सुर्ख लोहे को छुन्न के साथ।

क्यों कि बच्चा जानता है
पिटे लोहे का ठन्डा होना
उसकी हथेली पर
ग्राहक की
चवन्नी-अठन्नी का उछलना है
उसके परिवार का पलना है।
-रमेशराज

———————————
-मुक्तछंद-
।। गूंगा बच्चा ।।
जिंदगी की
सार्थकता तलाशता है
गूंगा बच्चा
सकेतों के बीच जीते हुए
अपने भीतर उगे
खामोशी के जहर को पीते हुए।

किसी परकटी चिडि़या के
आहत पंखों की तरह
बार-बार फड़फड़ाते हैं
गूगे बच्चे के होंठ।

अपने परिवेश की
भाषा से जुड़ने के लिए
विचारों के आकाश में
शब्दों के साथ उड़ने के लिए
उसके भीतर
भूकम्प उठाते हैं शब्द।

उसे अम्ल-सा छीलती है
हर लम्हा
होटों तक आयी हुई बात।
फिर भी
गूंगा बच्चा
गूंगा नहीं है
उसके अंग-अंग से
टपकते हैं शब्द
अपने में एक मुकम्मल
भाषा है गूंगा बच्चा।
निःशब्द होकर भी
खुला-सा खुला-सा है
गूंगा बच्चा।
-रमेशराज

———————————-
-मुक्तछंद-
।। रिक्शा चलाता हुआ बच्चा ।।
मोटे पेट वाली सवारी को
पूरी ताकत के साथ ढोता है
रिक्शा चलाता हुआ बच्चा।
उबड़खाबड़
टूटी-फूटी सड़क पर
हैंडिल और पैडल पर
जोर लगाते हुए
पूरे शरीर को
कमान बनाते हुए।

आंधी-बारिश, चिलचिलाती धूप को
हंसते-हंसते सह जाता है
रिक्शा चलाता हुआ बच्चा
मोटे पेट वाली सवारी को
सुख-सविधा जुटाता हुआ बच्चा।

बच्चा दिन-भर
करता है जुगाड़
महंगी दवाइयों की
रोटी की-सब्जी की
बूढ़ी अम्मा के लिए
बीमार बापू के लिए
रिक्शा चलाते हुए
पसीना में तर होते हुए
दौड़ते हांफते
जाड़े में कांपते
पगडंडी नापते
खुद भी एक
रिक्शा हो जाता है
रिक्शा चलाता हुआ बच्चा
मोटे पेट वाली सवारी को
उठाता हुआ बच्चा।
-रमेशराज

———————————-

-मुक्तछंद-
।। निरंतर कुछ सोचते हुए ।।
होटल पर
ग्राहकों को चाय पिलाता हुआ बच्चा
धीरे-धीरे बड़ा होता है
ग्राहकों और होटल मालिक की
गालियों के बीच |

होटल पर
ग्राहकों और होटल मालिक को
खुश करता है बच्चा
दांत निपोरते हुए
चाय बनाते हुए
गिलास भरते हुए
पान सिगरेट लाते हुए
गाना गाते हुए
चेहरे ताकते हुए
दौड़ते भागते हुए।

होटल पर
ग्राहकों की चाय और सिगरेट के साथ
राजनीति पर होती हुई बहस के बीच
बच्चा टटोलता है
अपने बूढ़े बाप, अंधी मां
और कुंआरी बहन के सन्दर्भ।

होटल पर
चाय देता हुआ बच्चा
अपने आप को परोसता है
टेबिलों पर चाय की तरह
ग्राहकों के बीच।

होटल पर
टूटते हुए गिलासों
गाल पर पड़े हुए चांटों
लम्बी फटकारों के सन्दर्भ
जोड़ता हुआ बच्चा
अपने आपको तब्दील करता है
एक आग में
निरन्तर कुछ सोचते हुए।
-रमेशराज

——————————–

-मुक्तछंद-
।। रोटी के कबूतर ।।
रोटी के अभाव में
बच्चा सो गया भूखा
अब उसके सपनों में
उतर रही हैं रोटियां
रंग-विरंगे कबूतरों की तरह।
बच्चा खेलना चाहता है
इस कबूतरों के साथ।
बच्चा उड़ाना चाहता है
सातवें आसमान तक
इन कबूतरों को कलाबाजियां खिलाते हुए।
बेतहाशा तालियां बजाते हुए।

बच्चा चाहता है
कि यह रंग-विरंगे कबूतर
उसकी नस-नस में बहें
गर्म खून की तरह।
उसमें एक लपलपाता जोश भरें।

बच्चे के सपने अब
बदल रहे हैं लगातार।
जिस ओर बच्चा
उड़ा रहा है कबूतर,
उस ओर आकाश में
एक भीमकाय बाज उभरता है
और देखते ही देखते
चट कर जाता है सारे कबूतर।

अब बच्चे के सपनों में
उतर रहा है
बाज़ की नुकीली रक्तसनी
चोंच का आंतक।
बच्चा डर रहा है लगातार
बच्चा चीख रहा है लगातार
रोटियां अब छा रही है
बच्चे के सपनों में
खूंख्वार बाज की तरह।

आकाश में एक उड़ता हुआ
कबूतर हो गया है बच्चा,
बाज उसका पीछा कर रहा है
ल..गा…ता…र…….

भूख से पीडि़त बच्चे के
सपने अब तेजी से
बदल रहे हैं लगातार—-
उसके सपनों में अब
रोटिया उतर रही हैं
चील, गिद्ध, कौवों की तरह।

रेत पर तड़पती हुई
मछली हो गया है बच्चा
बच्चा सो गया है भूखा।।
-रमेशराज
—————————————————-
+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-20201
—————————————————————

Language: Hindi
455 Views

You may also like these posts

जीने दें
जीने दें
Mansi Kadam
ग़ज़ल _ हाले दिल भी खता नहीं होता ।
ग़ज़ल _ हाले दिल भी खता नहीं होता ।
Neelofar Khan
हाय हाय पैसा
हाय हाय पैसा
अवध किशोर 'अवधू'
प्यारी-प्यारी सी पुस्तक
प्यारी-प्यारी सी पुस्तक
SHAMA PARVEEN
ଭଗବାନ କିଏ
ଭଗବାନ କିଏ
Otteri Selvakumar
रोला
रोला
seema sharma
पता नहीं था शायद
पता नहीं था शायद
Pratibha Pandey
अंजुरी भर....
अंजुरी भर....
Shally Vij
Confession
Confession
Vedha Singh
तुम मेरे हो
तुम मेरे हो
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
"आजमाना "
Dr. Kishan tandon kranti
खोखले शब्द
खोखले शब्द
Dr. Rajeev Jain
"मेरी क्रिसमस"
TAMANNA BILASPURI
शुक्रिया-ए-ज़िंदगी तेरी चाहतों में,
शुक्रिया-ए-ज़िंदगी तेरी चाहतों में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
सकारात्मक सोच अंधेरे में चमकते हुए जुगनू के समान है।
सकारात्मक सोच अंधेरे में चमकते हुए जुगनू के समान है।
Rj Anand Prajapati
" न जाने क्या है जीवन में "
Chunnu Lal Gupta
उपहार
उपहार
sheema anmol
- जिंदगी को जी लो -
- जिंदगी को जी लो -
bharat gehlot
असफल लोगो के पास भी थोड़ा बैठा करो
असफल लोगो के पास भी थोड़ा बैठा करो
पूर्वार्थ
23/19.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/19.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
शातिर हवा के ठिकाने बहुत!
शातिर हवा के ठिकाने बहुत!
Bodhisatva kastooriya
हिन्दी ग़ज़़लकारों की अंधी रति + रमेशराज
हिन्दी ग़ज़़लकारों की अंधी रति + रमेशराज
कवि रमेशराज
तन्हाई
तन्हाई
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
ले चलो तुम हमको भी, सनम अपने साथ में
ले चलो तुम हमको भी, सनम अपने साथ में
gurudeenverma198
जब मैं मर जाऊं तो कफ़न के जगह किताबों में लपेट देना
जब मैं मर जाऊं तो कफ़न के जगह किताबों में लपेट देना
Keshav kishor Kumar
#सुमिरन
#सुमिरन
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
*पत्रिका समीक्षा*
*पत्रिका समीक्षा*
Ravi Prakash
महावर
महावर
D.N. Jha
यहीं सब है
यहीं सब है
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
Loading...